पाकिस्तान से आए 108 प्रवासियों को भारतीय नागरिकता

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पाकिस्तान से आए 108 प्रवासियों को भारतीय नागरिकता

हाल ही में गुजरात में पाकिस्तान से आए 108 प्रवासियों को नागरिकता प्रदान की गई है।

वर्ष 2021 में गृह मंत्रालय ने एक आदेश दिया जिसमें गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब राज्यों के कुछ जिलों के कलेक्टर्स को निम्नलिखित कार्यों के लिए शक्तियां प्रदान की थीं:

नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5 और 6 के तहत क्रमश:

  • अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हुए अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित किसी भी व्यक्ति को भारत के नागरिक का पंजीकरण तथा देशीयकरण के प्रमाण-पत्र प्रदान करना ।
  • अवैध अप्रवासी को छोड़कर कोई भी विदेशी नागरिक देशीयकरण द्वारा भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है,

लेकिन वह  निम्नलिखित शर्ते पूरी करता हो

  • वह सामान्यतः 12 वर्षों से भारत में निवास कर रहा हो;
  • आवेदन की तारीख से ठीक पहले 12 महीने की अवधि के दौरान भारत में रहा हो, साथ ही इन 12 महीनों से पहले के 14 वर्षों में कुल मिलाकर 11 वर्ष भारत में रहा हो ।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955 की तीसरी अनुसूची में निर्दिष्ट अन्य पात्रताएं ।
  • भारतीय नागरिकता जन्म, वंश, पंजीकरण और देशीयकरण द्वारा प्राप्त की जा सकती है।

संविधान में नागरिकता :

  • संविधान का भाग II, अनुच्छेद 5-11, नागरिकता से संबंधित है। हालाँकि इसमें इस संबंध में न तो कोई स्थायी और न ही कोई विस्तृत प्रावधान है। अनुच्छेद 5, 6, 7 और 8 में इसके बारे में विस्तार से प्रावधान किया गया है कि संविधान लागू होने के बाद से कौन भारत का नागरिक होगा।
  • अनुच्छेद 11 संसद को नागरिकता के अधिग्रहण और समाप्ति के संबंध में कोई भी प्रावधान करने का अधिकार देता है। यह केवल उन व्यक्तियों की पहचान करता है जो इसके प्रारंभ में (यानी 26 जनवरी, 1950 को) भारत के नागरिक बन गए थे।
  • यह इसके प्रारंभ होने के पश्चात् नागरिकता पाने या समाप्त होने की समस्या से संबंधित नहीं है। यह संसद को ऐसे मामलों और नागरिकता से संबंधित किसी भी अन्य मामले के लिये कानून बनाने का अधिकार देता है। तदनुसार संसद ने नागरिकता अधिनियम (वर्ष 1955) अधिनियमित किया है, जिसमें समय-समय पर संशोधन किया गया है।

नागरिकता को कैसे परिभाषित किया जाता है?

  • नागरिकता व्यक्ति और राज्य के बीच संबंध को दर्शाती है।
  • किसी भी अन्य आधुनिक राज्य की तरह, भारत में भी दो तरह के लोग हैं- नागरिक और विदेशी। नागरिक भारतीय राज्य के पूर्ण सदस्य हैं और इसके प्रति निष्ठावान हैं। उन्हें सभी नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं।
  • ‘नागरिकता’ बहिष्कार का एक विचार है क्योंकि इसमें गैर-नागरिकों को शामिल नहीं किया गया है।

नागरिकता प्रदान करने के दो प्रसिद्ध सिद्धांत हैं:

  • जहाँ ‘‘jus soli’ जन्म स्थान के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, वहीं ‘jus sanguinis’ रक्त संबंधों को मान्यता देता है।
  • मोतीलाल नेहरू समिति (वर्ष 1928) के समय से ही भारतीय नेतृत्व ‘jus soli’ की प्रबुद्ध अवधारणा के पक्ष में था।
  • ‘jus sanguinis’ के नस्लीय विचार को भी संविधान सभा ने खारिज कर दिया था क्योंकि यह भारतीय लोकाचार के खिलाफ था।

स्रोत – न्यूज़ ऑन ए.आई.आर.

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