Question – वायुराशि से आप क्या समझते हैं ? इसकी उत्पत्ति पर चर्चा करें और यह विश्व जलवायु को कैसे प्रभावित करता है? – 2 December 2021
उत्तर – वायुराशि वायुमंडल का वह विशाल, विस्तृत एवं घना भाग है जिसकी भौतिक विशेषताओं यथा तापमान एवं आर्द्रता में विभिन्न ऊँचाई पर क्षैतिज दिशा में समरूपता पाई जाती है। प्रायः वायुराशियों का विस्तार कई सौ किलोमीटर तक होता है। इनमें वायु की अनेक परतें पाई जाती हैं जिनमें तापमान एवं आद्रता लगभग एक समान होती है। वायुराशियों की उत्पत्ति तब होती है जब धरातल पर वायुमंडलीय विशेषताओं में लंबे समय तक स्थिरता पाई जाती है।
वायुराशि की उत्पत्ति हेतु आवश्यक दशाएँ:
ध्यातव्य है कि एक आदर्श वायु राशि की उत्पत्ति के लिये कुछ निश्चित दशाओं का होना आवश्यक होता है जो निम्नलिखित हैं-
- इसके लिये एक विस्तृत क्षेत्र होना चाहिये जो स्वभावतः समांगी हो यथा या तो संपूर्ण भाग स्थलीय हो या जलीय हो जिससे कि क्षेत्र की तापमान एवं आर्द्रता संबंधी विशेषताएँ समान हों। ज्ञात हो कि विषमांगी सतह में तापमान एवं आद्रता संबंधी समरूपता नहीं हो सकती।
- यदि वायु क्षैतिज दिशा में गतिशील हो तो गति अपसरण प्रकार की होनी चाहिये। ध्यातव्य है कि अपसरण प्रकार की गति होने पर वायुमंडलीय स्थिरता उत्पन्न होती है।
- वायुमंडलीय दशाओं में लंबे समय तक स्थिरता होनी चाहिये। इससे वायु धरातलीय विशेषताओं को ग्रहण करने में समर्थ हो जाती है।
वायुराशि के क्षेत्रों को निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं–
- वायुराशि के क्षेत्र में वायु दाब सदैव उच्च होता है।
- इन क्षेत्रों को वायु प्रवाह का स्रोत क्षेत्र भी कहा जाता है क्योंकि वायुराशि के सीमांत क्षेत्रों से वायु निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती हैं।
- यह प्रतिचक्रवातीय विशेषताओं का क्षेत्र होता है।
- इन क्षेत्रों में वायु सतत् रूप से केंद्र में निचे की और उतरने या बैठने की प्रवृत्ति रखती है।
- वृहद् मध्यवर्ती क्षेत्र में तापमान एवं वायुमंडलीय नमो में समरूपता होती है।
- वायुराशि के क्षेत्रों में अति उचाई वाले बादल पक्षाभ बदल होते है जिसकी छाया का प्रभाव लगभग नहीं के बराबर होता है।
- वायु के बैठने की प्रवृति के क्रम में धूलकण भी सतह पर आ जाते है जिससे वायुराशियाँ को उत्पत्ति के समय द्रश्यता काफी उच्च होती है|
- वायु में क्षैतिज गति अति मंद होती है।
वायुराशियों का वर्गीकरण:
वायुराशियों को उनके उत्पत्ति के स्थान, मार्ग, तापमान, आर्द्रता आदि के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। इस प्रकार का वर्गीकरण त्रेवार्थ (Glenn T. Trewartha) द्वारा किया गया है। उद्गम क्षेत्र के आधार पर वर्गीकरण- इसमें तापमान तथा आद्रता को आधार बनाया गया है। तापमान के आधार पर वर्गीकरण- तापमान संबंधी विशेषता के आधार पर वायुराशियों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है।
ध्रुवीय (Polar)
उच्च ध्रुवीय अक्षांशों पर जिन वायुराशियों का उद्गम होता है वे ध्रुवीय वायु राशि कहलाती हैं। इन्हें ‘P’ अक्षर द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। ध्यातव्य है कि आर्कटिक वायु राशि भी एक ध्रुवीय वायुराशि है जिसे अक्षर ‘A’ से प्रदर्शित करते हैं। तापमान की दृष्टि से ये ठण्डी होती हैं।
उष्णकटिबंधीय (Tropical)
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न वायुराशियों को उष्णकटिबंधीय वायुराशि कहा जाता है। इन्हें ‘T’ अक्षर से प्रदर्शित किया जाता है। ये स्वभावत: (तापमान की दृष्टि में) गर्म होती हैं। विषुवत रेखीय वायुराशि भी उष्णकटिबंधीय प्रकार की वाययुराशि ही है। इस वायुराशि को ‘E’ अक्षर द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
जब ध्रुवीय महाद्वीपीय वायुराशि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों या विषुवत रेखा की ओर गतिशील होती है तो शीत लहर उत्पन्न करती है तथा तापमान हिमांक से की नीचे चला जाता है जैसे अमेरिका के सेंट लुईस में शीत-लहरों के आगमन पर तापमान – 22°C तक चला जाता है। जब ध्रुवीय वायुराशियाँ उष्णकटिबंधीय वायुराशियों से मिलती हैं तो वाताग्र का निर्माण होता है। जिसमें शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात बनते हैं।