राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड
- यह एक वैधानिक संगठन है, जिसकी स्थापना वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम, 1972 के अंतर्गत हुई है। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम,1972 के अधीन वन्यजीवों और वनों के संरक्षण एवं विकास को प्रोत्साहन देने के लिए गठित एक वैधानिक निकाय है।
- हाल ही में अपनी 60वीं बैठक में ‘राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड’ (नेशनल बोर्ड ऑफ़ वाइल्ड लाइफ –एनबीडब्लू एल) की स्थायी समिति ने देश में मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन हेतु परामर्श को मंज़ूरी दे दी है।
- बैठक में केंद्र प्रयोजित वन्यजीव आवास एकीकृत विकास योजना में मध्यम आकार की जंगली बिल्ली कैराकल (अति संकटग्रस्त जीवों की श्रेणी में शामिल) को शामिल करने हेतु स्वीकृति दी गई है, जिसके तहत इस मध्यम आकार की जंगली बिल्ली (गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों) के संरक्षण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
बोर्ड की संरचना:
इस बोर्ड के अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होते हैं। उनके अतिरिक्त इसमें 46 अन्य सदस्य होते हैं।इनमें से 19 पदेन सदस्य होते हैं। इस बोर्ड में तीन सांसद भी सदस्य होते हैं (2 लोकसभा के और 1 राज्य सभा के)। बोर्ड में 5 गैर सरकारी संगठन के अलावा 10प्रतिष्ठित पर्यावरणवेत्ता, संरक्षणवादी और वातावरणवेत्ता होते हैं।
बोर्ड की भूमिका:
- यह केन्द्रीय सरकार को देश के वन्यजीवन के संरक्षण के लिए नीतियाँ बनाने और अन्य उपाय करने के विषय में परामर्श देता है।इस बोर्ड का प्राथमिक कार्य वन्यजीवों और वनों के संरक्षण और विकास को प्रोत्साहन देना है।
- इसके पास वनजीवन से सम्बंधित सभी विषयों की समीक्षा करने और राष्ट्रीय उद्यानों एवं आश्रयणियों में या उनके आस-पास स्थित परियोजनाओं का अनुमोदन करने की शक्ति है।बिना इस बोर्ड के अनुमोदन के किसी भी राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यजीव आश्रयणी की सीमाओं में बदलाव नहीं हो सकता।
परामर्शिका की परिकल्पना:
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अनुसार समस्यात्मक वन्य जीवों से निपटने के लिए ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाना।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को अपनाना, बाधाओं का निर्माण, टोल फ्री हॉटलाइन नंबरों के साथ समर्पित सर्किल वार कंट्रोल रूम, हॉटस्पॉट्स की पहचान और बेहतर स्टाल-फेड (पशुशाला जैसे स्थानों पर रखे जाने वाले) जानवरों आदि के लिए विशेष योजनाओं का निर्माण व कार्यान्वयन करना।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब कोई वन्यजीव लोगों की आजीविका या सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष और पुनरावर्ती खतरे का कारण बनता है। इसके कारण उस प्रजाति पर अत्याचार की संभावना निर्मित होती है।
- मानव वन्यजीव संघर्ष के कारणों में शामिल हैं: वन्यजीवों के पर्यावास की हानि, पशुधन द्वारा अतिचारण, कृषि विस्तार आदि।
कैराकल बिल्ली के सन्दर्भ में:
- कैराकल जंगली बिल्ली (कैराकल) भारत में पाई जाने वाली बिल्ली की एक दुर्लभ प्रजाति है। यह पतली एवं मध्यम आकार की बिल्ली है, जिसके लंबे एवं शक्तिशाली पैर और काले गुच्छेदार कान होते हैं।
- इस बिल्ली की प्रमुख विशेषताओं में इसके काले गुच्छेदार कान (Black Tufted Ears) शामिल हैं।
- यह बिल्ली स्वभाव में शर्मीली, निशाचर है और जंगल में मुश्किल से ही देखी जाती है।
निवास स्थान:
भारत में इन बिल्लियों की उपस्थिति केवल तीन राज्यों में बताई गई है, ये राज्य हैं- मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान।
कैराकल बिल्ली के सन्दर्भ में अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:
- मध्य प्रदेश में इसे स्थानीय रूप से शिया-गोश (Shea-gosh) या सियाह-गश (siyah-gush) कहा जाता है।
- गुजरात में कैराकल को स्थानीय रूप से हॉर्नट्रो (Hornotro) कहा जाता है, जिसका अर्थ है- ब्लैकबक का हत्यारा।
- राजस्थान में इसे जंगली बिलाव (Junglee Bilao) या जंगली (Wildcat) के नाम से जाना जाता है।
खतरा:
कैराकल को ज़्यादातर पशुधन की सुरक्षा हेतु मारा जाता है, लेकिन विश्व के कुछ क्षेत्रों में इसके मांस के लिये भी इसका शिकार किया जाता है।
स्रोत – द हिन्दू,पीआईबी