आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मध्य जल विवाद

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आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मध्य जल विवाद

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच कृष्णा जल बंटवारे को लेकर गतिरोध जारी है, क्योंकि अभी तक इस विवाद का कोई स्थायी समाधान नहीं हो पाया है।

  • कृष्णा नदी जल-बंटवारे पर जारी असहमति इस क्षेत्र में राजनीति को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है।
  • साथ ही, राजनीतिक लाभ के लिये भी जल-विवाद को समय-समय पर हवा दी जाती रही है।
  • आंध्र प्रदेश का आरोप है कि तेलंगाना, जल विद्युत उत्पादन के लिये ‘कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड’ से अनुमोदन के बिना ही चार परियोजनाओं- जुराला, श्रीशैलम, नागार्जुन सागर और पुलीचिंताला से पानी का प्रयोग कर रहा है।
  • विदित है कि ‘कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड’ राज्य के विभाजन के बाद कृष्णा नदी बेसिन में जल-प्रबंधन और विनियमन करने के लिये स्थापित एक स्वायत्त निकाय है।
  • तेलंगाना का कहना है कि वह अपनी विद्युत ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पनबिजली उत्पादन जारी रखेगा। साथ ही, इसने आंध्र प्रदेश सरकार की सिंचाई परियोजनाओं (विशेष रूप से रायलसीमा लिफ्ट सिंचाई परियोजना) का कड़ा विरोध किया है। तेलंगाना ने कृष्णा नदी से जल के 50:50 आवंटन की माँग की है।

विवाद समाधान के प्रयास

  • कृष्णा नदी जल विवाद समाधान के लिये वर्ष 1969 में ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण’ (Krishna Water Disputes Tribunal-KWDT) का गठन किया गया।
  • इस न्यायाधिकरण ने वर्ष 1973 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। न्यायाधिकरण ने महाराष्ट्र के लिये 560 TMC, कर्नाटक के लिये 700 TMC और आंध्र प्रदेश के लिये 800 TMC जल निर्धारित किया। साथ ही, 31 मई, 2000 के बाद इसकी समीक्षा और अपेक्षित संशोधन की भी बात कही गई।
  • राज्यों के मध्य विवाद बढ़ने पर वर्ष 2004 में ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-2’ स्थापित किया गया, जिसने वर्ष 2010 में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की। यह अंतिम फैसला वर्ष 2050 तक मान्य रहेगा।
  • हालाँकि, तेलंगाना के गठन के बाद आंध्र प्रदेश न्यायाधिकरण के फैसले पर पुनर्विचार करने और जल विवाद में तेलंगाना को भी एक पक्षकार बनाने पर जोर दे रहा है।

जल बंटवारे का वर्तमान स्वरुप

  • तेलंगाना के आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद दोनों राज्यों ने ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-2’ द्वारा जल आवंटन पर अंतिम फैसला आने तक अनौपचारिक/तदर्थ रूप से जल को 66:34 के आधार पर विभाजित करने पर सहमति जताई है।
  • संयुक्त रूप से दोनों राज्यों को आवंटित 811 टी.एम.सी. (हजार मिलियन क्यूबिक) फीट पानी में से वर्तमान में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को क्रमशः 512 टीएमसी फीट और 299 टीएमसी फीट पानी मिलता है।
  • तेलंगाना चाहता है कि ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-2’ जल विवाद को स्थायी रूप से सुलझाए और बोर्ड इसके लिये पारस्परिक रूप से सहमत एक पूर्ण बैठक बुलाए।

जल विवाद और संवैधानिक पक्ष

  • संविधान के अनुच्छेद-262 के अंतर्गत संसद किसी अंतर्राज्यीय नदी व नदी घाटी जल के उपयोग, वितरण तथा नियंत्रण से संबंधित विवाद या शिकायत के समाधान के लिये कानून का निर्माण कर सकती है।
  • संसद ने अनुच्छेद-262 के तहत दो कानून, यथा- ‘नदी बोर्ड अधिनियम,1956’ और ‘अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम,1956’ पारित किये हैं।
  • नदी बोर्ड अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा अंतर्राज्यीय नदी और नदी घाटियों के विनियमन और विकास हेतु नदी बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया है।
  • नदी बोर्ड का गठन राज्य सरकारों के आग्रह पर उन्हें सलाह देने के लिये किया जाता है।
  • अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम केंद्र सरकार को अंतर्राज्यीय नदी या नदी घाटी के जल को लेकर दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य विवाद के समाधान हेतु एक तदर्थ न्यायाधिकरण (Ad-hoc Tribunal) की स्थापना का अधिकार प्रदान करता है।
  • इस अधिनियम में निर्णय देने की अधिकतम समय सीमा निर्धारित नहीं है। अधिकरण का निर्णय विवाद से संबंधित पक्षकारों के लिये अंतिम एवं बाध्यकारी होता है।
  • इस अधिनियम के तहत स्थापित अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत किये गए जल विवाद न तो सर्वोच्च न्यायालय और न ही किसी अन्य न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आते हैं।

स्रोत – द हिन्दू

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