भारत में भुलाए जाने का अधिकार (The ‘Right to be Forgotten’ in India)
हाल ही में, एक मशहूर टेलीविजन अभिनेता ‘आशुतोष कौशिक’ ने इंटरनेट से अपनी सभी तस्वीरें,वीडियो,और लेख हटाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। इस याचिका में उन्होंने इसके लिए भुलाए जाने का अधिकार (Right to be Forgotten) का हवाला दिया है।
याचिका में की गई मांगे:
- कौशिक की याचिका मांग की गई है कि ‘इंटरनेट पर उससे संबंधित सभीपोस्ट और वीडियो’ को हटा दिया जाए , क्योंकि इसकी वजह से याचिकाकर्ता को उसके द्वारा एक दशक पहले गलती से किए गए छोटे-मोटे कृत्यों के लिए लगातार सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक पीड़ा झेलनी पड़ रही है।
- याचिका में यह भी कहा गया है, कि याचिकाकर्ता के अपने निजी जीवन में जों गलतियाँ हो चुकी हैं, उन सभी गलतियों के लिए जो भी सज़ा या सुधार किये जाने थे वे सब किये जा चुके हैं, अब उन गलतियों का मेरे जीवन से कोई संबंध नहीं जोड़ना चाहिए । और इसलिए वर्तमान मामले में, ‘यह पहलू’ माननीय अदालत के समक्ष विधिक सुनवाई के लिए एक घटक के रूप में प्रस्तुत है।
भारतीय संदर्भ में ‘भुलाए जाने का अधिकार’:
- ‘व्यक्ति के ‘निजता के अधिकार’ के दायरे में भुलाए जाने का अधिकार’ (Right to be Forgotten), भी आता है।
- वर्ष 2017 के ‘पुत्तुस्वामी मामले’ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने एक ऐतिहासिक फैसले में ‘निजता के अधिकार’ को अनुच्छेद 21 के तहत एक ‘मौलिक अधिकार’ घोषित कर दिया गया था।
इस संदर्भ में ‘निजी डेटा सुरक्षा विधेयक’ के अंतर्गत किए गए प्रावधान:
- ‘निजता का अधिकार’, ‘निजी डेटा सुरक्षा विधेयक’ (Personal Data Protection Bill) द्वारा शासित होता है, यद्यपि यह विधेयक अभी भी संसद में लंबित है।
- और इस ‘विधेयक’ में भी विशिष्ट रूप से “भुलाए जाने का अधिकार” के बारे में बात की गई है।
- आम तौर पर, ‘भुलाए जाने के अधिकार’ के तहत, उपयोगकर्ता को ‘डेटा न्यासियों’ (data fiduciaries) द्वारा जमा की गई अपनी व्यक्तिगत जानकारी को डी-लिंक या सीमित करने तथा इसे पूरी तरह से हटा सकने का भी अधिकार है, या जानकारी को सुधार के साथ दिखाए जाने के लिए इसे सही भी कर सकते हैं।
विधेयक में इस प्रावधान से संबंधित विवाद:
- इस प्रावधान के साथ मुख्य मुद्दा यह है, कि व्यक्तिगत डेटा और जानकारी की संवेदनशीलता को संबंधित व्यक्ति द्वारा स्वतंत्र रूप से निर्धारित नहीं किया जा सकता है, बल्कि ‘डेटा संरक्षण प्राधिकरण’ (Data Protection Authority – DPA) द्वारा इसका निरीक्षण किया जाएगा।
- हालांकि मसौदा विधेयक में किए गए प्रावधान के अनुसार, उपयोगकर्ता अपने निजी डेटा को इंटरनेट से हटाने की मांग कर सकता है, लेकिन उसका यह अधिकार ‘डेटा संरक्षण प्राधिकरण’ के लिए काम करने वाले न्यायनिर्णायक अधिकारी की अनुमति के अधीन होगा।
स्रोत –द हिन्दू