आदि शंकराचार्य के जन्मस्थान को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किए जाने की संभावना है
आदि शंकराचार्य एक अद्वैत दार्शनिक थे। उनका जन्म एर्नाकुलमजिले (केरल) के कालडि (1वीं – 8वींशताब्दी ईस्वी) में हुआ था।
प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत, किसी स्मारक को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण राष्ट्रीय महत्व के एक स्मारक के रूप में नामित करता है।
अधिनियम केंद्र सरकार को स्थल का रखरखाव करने, संरक्षित करने और उसे बढ़ावा देने के लिए अधिकृत करता है। साथ ही, इसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक महत्व का माना जा सकता है।
आदि शंकराचार्य के बारे में:
- उनका जन्म पेरियार नदी के तट पर स्थित कालडि गांव में हुआ था। पेरियार केरल की सबसेबड़ी नदी है। 8 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने गुरु, गुरु गोविंदपाद की खोज के लिए घर त्याग दिया था।
- उन्होंने हिंदू धर्म के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने योग द्वारा प्राप्त मन की पवित्रता और स्थिरता को आत्म-मुक्ति के लिए सहायक मानाथा।
- उन्होंने अद्वैत वेदांत दर्शन को प्रतिपादित किया था। इसका अनिवार्य रूप से अर्थ यह है कि जीव ब्रह्म से अलग नहीं है अर्थात् जीव और ब्रह्म एक ही है।
- उनके अनुसार उपनिषद, अद्वैत के एक मौलिक सिद्धांत को ब्रह्मकहते हैं, जो सभी चीजोंकी वास्तविकता है।
- मूल सार यह है कि आत्मा शुद्ध निरुद्देश्य चेतना है। आत्मा के अतिरिक्त किसी और का अस्तित्व नहीं है, यह अद्वैत है तथा इसका अस्तित्व अनंत है। आत्मा ही ब्रह्म है।
स्रोत –द हिन्दू