अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की शक्तियाँ

अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की शक्तियाँ

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 433A, संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की शक्तियों को अवरुद्ध नहीं करती है।

पृष्ठभूमि

  • उच्चतम न्यायालय (SC) हरियाणा राज्य बनाम राजकुमार वाद में, इस तर्क अथवा विकल्प का परीक्षण कर रहा था कि क्या राज्य सरकारें, दोषियों द्वारा किए गए अपराधों के निरपेक्ष उन्हें क्षमादान देने और निर्धारित दंडावधि से पूर्व उन्हें मुक्त करने की नीतियां अपना सकती हैं।
  • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 433A के अनुसार, समुचित सरकार दंडभोगी व्यक्ति की सम्मति के बिना उसके मृत्यु दंडादेश का किसी अन्य दंड के रूप में लघुकरण कर सकती है। आजीवन कारावास के दंडादेश का 14 वर्ष से अनधिक अवधि के कारावास में या जुर्माने के रूप में लघुकरण कर सकती है। साथ ही, कठिन कारावास का सादे कारावास या जुर्माने में या सादे कारावास का जुर्माने में लघुकरण कर सकती है।
  • यह धारा ऐसे दोषियों के आजीवन कारावास के दंड को निलंबित करने की राज्य की शक्तियों को सीमित करती है।

उच्चतम न्यायालय (SC) का निष्कर्ष

  • इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार ऐसे किसी बंदी को दंड में छूट देने के लिए अधिकृत है, यदि उसने 14 वर्ष के कारावास को पूर्ण कर लिया है।
  • परंतु, यदि कारावास की अवधि 14 वर्ष से कम है, तोसंविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल, राज्य सरकार की अनुशंसा पर बंदी को समय पूर्व रिहाई प्रदान कर सकता है।
  • अनुच्छेद 161 के तहत किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराएगए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन (Reprive) विराम (Respite) या परिहार (Remission) करने की अथवा दंडादेश में निलंबन (Suspend), परिहार या लघुकरण (Commutation) की शक्ति राज्यपाल में निहित होगी।

स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस

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