भारत के ‘हूलॉक गिब्बन’के संरक्षण की आवश्यकता
हाल ही में ग्लोबल गिब्बन नेटवर्क (GGN) की पहली बैठक चीन के हैनान प्रांत के हाइकोउ में आयोजित की गई थी।
इस ग्लोबल गिब्बन नेटवर्क (GGN) की पहली बैठक में भारत के एकमात्र वानर (हूलॉक गिब्बन) की संरक्षण स्थिति पर चिंता जाहिर की गयी है।
गिबन्स (Gibbons) के बारे में
गिबन्स एशिया के दक्षिणपूर्वी भाग में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जंगलों में रहते हैं। यह सभी वानरों में सबसे छोटे और तेज़ हैं।
भारत में हूलॉक गिब्बन की अनुमानित जनसंख्या 12,000 है। यह भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र की यूनिक स्पीशीज है। यह पृथ्वी पर गिब्बन की 20 प्रजातियों में से एक है।
सभी वानरों की तरह, वे बेहद बुद्धिमान, विशिष्ट पर्सनालिटी और मजबूत पारिवारिक बंधन वाले होते हैं।
गिब्बन प्रजाति की वर्तमान में सभी 20 प्रजातियाँ विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं। जो इनके संरक्षण के हिसाब से चिंताजनक स्थिति है।
1900 के बाद से, गिब्बन वितरण और आबादी में नाटकीय रूप से गिरावट आई है, उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में इनकी केवल छोटी आबादी रह गयी है।
हूलॉक गिब्बन (Hoolock gibbon) को मुख्य रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए पेड़ों की कटाई से अधिक खतरा है।
अमेरिकी नटुरलिस्ट आर. हरलान ने 1834 में असम के हूलॉक गिब्बन का वर्णन करने वाले पहले व्यक्ति थे।
बहुत समय से भारत के प्राणीशास्त्रियों का मानना था कि पूर्वोत्तर में वानर यानी गिब्बन की दो प्रजातियाँ पाई भारत में पाई जाती हैं।
इस दोनो प्रजातियों में पहली प्रजाति पूर्वी हूलॉक गिब्बन (हूलॉक ल्यूकोनिडिस) जो अरुणाचल प्रदेश के एक विशिष्ट क्षेत्र में पाई जाती है और दूसरी पश्चिमी हूलॉक गिब्बन (हूलॉक हूलॉक) पूर्वोत्तर में अन्यत्र प्राप्त होती हैं।
लेकिन 2021 में हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) के नेतृत्व में एक अध्ययन ने आनुवंशिक विश्लेषण के माध्यम से साबित कर दिया कि भारत में वानर की केवल एक प्रजाति प्राप्त है।
स्रोत – द हिन्दू