Question – हिमालय की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से बताते हुए बताएं कि इसे अक्सर युवा और अशांत पर्वत क्यों कहा जाता है। – 29 November 2021
उत्तर – पृथ्वी की सतह अर्थात स्थलमंडल का निर्माण छोटी-बड़ी महाद्वीपीय प्लेटों से हुआ है। यह लगातार आंशिक रूप से पिघली चट्टानी परत यानी एस्थेनोस्फियर पर टिकी हुई है और उसके ऊपर फिसलती रहती है। इसकी खास बात यह है कि इसके किनारों पर अत्याधिक दबाव पड़ता है, और इसी स्थान पर जहां भूकंप और ज्वालामुखीय विस्फोटों जैसी प्राकृतिक दुर्घटनाएं होती रहती हैं। जिन स्थलों पर दो प्लेटें आपस में टकराती हैं वहां इतना अधिक दबाव पैदा होता है कि उससे सतह पर विशाल सिलवटें पड़ जाती हैं, जिनसे ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं का निर्माण होता है।
हिमालय की उत्पत्ति – हिमालय पर्वत विश्व के सर्वाधिक ऊंचे और दुर्गरम्य पर्वतीय तंत्रों में से एक है। भारत की उत्तरी सीमाओं के साथ, ये पर्वत श्रृंखलाएँ पश्चिम-पूर्व दिशा में सिंधु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक विस्तृत हैं। 225 मिलियन वर्ष पूर्व भारत एक विशाल द्वीप था, जो एक अति विस्तृत महासागर में ऑस्ट्रेलियाई तट पर अवस्थित था। टेथिस सागर इसे एशिया से पृथक करता था। कालांतर में लगभग 200 मिलियन वर्ष पूर्व जब वृहद् महाद्वीप पैंजिया में विघटन आरंभ हुआ तो, विवर्तनिकी प्लेट संचलन के कारण भारत का विस्थापन उत्तर दिशा में एशिया की ओर होने लगा।
लगभग 80 मिलियन वर्ष पूर्व भारत एशियाई महाद्वीप से 6,400 किमी दक्षिण में अवस्थित था, किन्तु यह प्रति वर्ष 9-16 से.मी की दर से इसकी ओर बढ़ रहा था। इसी समय टेथिस सागर के नितल का उत्तर की ओर एशिया महाद्वीप के नीचे क्षेपण आरंभ हो गया और यह प्लेट सीमांत, वर्तमान एंडीज पर्वत श्रृंखला के समान एक महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण सीमान्त बन गया।
बाद में, समुद्र की भारतीय सीमा पर तलछट की एक मोटी परत विस्थापित हो गई और यूरेशियन महाद्वीप पर जमा हो गई, जिसे एक अभिवृद्धि उभार के रूप में जाना जाता है। इस निक्षेपित अवनमन पर संपीडक बलों के प्रभाव से वर्तमान हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ है।
लगभग 40-50 मिलियन वर्ष पहले, भारतीय महाद्वीपीय प्लेट के उत्तर की ओर विस्थापन की दर धीमी होकर प्रति वर्ष 4-6 सेमी हो गई थी। इस धीमी गति को यूरेशियन और भारतीय महाद्वीपीय प्लेटों के बीच टकराव की शुरुआत, पूर्वी टेथिस सागर के भरने और हिमालय के उत्थान की शुरुआत के रूप में समझाया गया है।
यूरेशियाई प्लेट आंशिक रूप से मुड़कर भारतीय प्लेट पर आरोहित हो गयी, लेकिन निम्न घनत्व / उच्च उत्प्लावकता के कारण दोनों में से किसी भी महाद्वीपीय प्लेट का क्षेपण नहीं हो सका। इससे संपीड़नात्मक बलों के कारण वलन और भ्रंशन के परिणामस्वरूप महाद्वीपीय क्रस्ट की मोटाई बढ़ने से हिमालय और तिब्बत के पठार का उत्थान हुआ। महाद्वीपीय क्रस्ट की मोटाई से इस क्षेत्र में ज्वालामुखीय सक्रियता की समाप्ति हो गयी, क्योंकि ऊर्ध्वाधर गति करने वाला मैग्मा सतह पर पहुंचने से पूर्व ही ठोस हो जाता है।
हालाँकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हिमालय एक पर्वत श्रृंखला के रूप में नहीं बना है, बल्कि लगभग समानांतर में फैली तीन पर्वत श्रृंखलाओं में विकसित हुआ है। माना जाता है कि वे एक के बाद एक तीन अलग-अलग चरणों में उभरे हैं। महान हिमालय के बनने के बाद दूसरे चरण में लगभग 25-30 मिलियन वर्ष पूर्व मध्य हिमालय का निर्माण हुआ। शिवालिक का निर्माण हिमालय पर्वत निर्माण के अंतिम चरण में हुआ था।
हिमालय वर्तमान में प्रति वर्ष 1 सेमी से अधिक की दर से बढ़ रहा है क्योंकि भारतीय प्रायद्वीप उत्तर की ओर बढ़ना जारी रखता है, जो इस क्षेत्र में वर्तमान में उथले उपरिकेंद्र भूकंपों की व्याख्या करता है। हालांकि, अपक्षय और अपरदन बलों द्वारा हिमालय के क्षरण की प्रक्रिया भी लगभग उसी दर से हो रही है। इससे स्पष्ट है कि हिमालय अभी बनने की प्रक्रिया में है। यही कारण है कि हिमालय को युवा और अशांत माना जाता है।