संसदीय स्थायी समिति ने देश में हिमनद प्रबंधन पर रिपोर्ट सौंपी है
हिमनद (ग्लेशियर) भारतीय हिमालयी क्षेत्र के जल – विज्ञान संबंधी चक्रों (Hydrological Cycles) के महत्वपूर्ण घटक हैं। ये तीन बड़ी नदी प्रणालियों (सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र) के लिए जल का स्रोत हैं।
हिमालय के हिंदू कुश क्षेत्र को ‘वाटर टावर ऑफ एशिया भी कहा जाता है । हिमालयी पर्वतों को ‘तीसरा ध्रुव’ भी कहा जाता है।
समिति की रिपोर्ट में निम्नलिखित प्रमुख मुद्दों को रेखांकित किया गया है:
हिमालय के अधिकतर हिमनद पिघल रहे हैं या पीछे हट रहे हैं। यह हिमालयी नदी प्रणालियों में जल के प्रवाह को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।
साथ ही, हिमनद झील के टूटने से उत्पन्न बाढ़ (GLOF), हिमनदीय हिमस्खलन जैसी आपदाओं को भी जन्म देगा ।
हिमनदों के पिघलने से हिमालय में वृक्ष रेखा (Tree line) में बदलाव हो सकता है। इसके अलावा, पादपों के फेनोलॉजिकल (Phenological) व्यवहार में भी परिवर्तन ला सकता है।
फेनोलॉजी: जलवायु और आवधिक जैविक घटनाओं के बीच संबंधों से संबंधित विज्ञान की एक शाखा है।
पड़ोसी देशों के साथ जल – विज्ञान संबंधी सूचना पर डेटा साझा करने में कमी देखी जा रही है।
हिमालय के हिमनदों के जल – मौसम विज्ञान और जल – भूवैज्ञानिक खतरों से निपटने के लिए कई मंत्रालय/विभाग/ संस्थाएं हैं। इन सभी के कार्य अधिदेश भी अलग-अलग हैं।
प्रमुख सिफारिशें
अलग-अलग सरकारी विभागों / मंत्रालयों के बीच समन्वय के लिए एकीकृत नोडल एजेंसी स्थापित करने की आवश्यकता है।
हिमनदीय गतिविधि / व्यवहार पर जल – विज्ञान संबंधी जानकारी / डेटा को निर्बाध तरीके से साझा करने के लिए क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए ।
एक बहु-विपदा अलर्ट और चेतावनी प्रणाली स्थापित करनी चाहिए ।
हिमनद प्रबंधन में हिमालयी राज्यों और उनकी एजेंसियों की बेहतर भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस