हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने पर केंद्र के बदलते रुख पर प्रश्न किया है ।
जिन राज्यों में हिंदुओं की संख्या कम है, वहां उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग वाली याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की गयी है।
इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा बार-बार अपना रुख बदलने पर न्यायालय ने नाराजगी व्यक्त की है।
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय (MoMA) द्वारा दायर पहले हलफनामे में कहा गया था कि इस मामले पर निर्णय संबंधित राज्यों को करना है।
हालांकि, नवीनतम हलफनामे में कहा गया है कि किसी समूह को अल्पसंख्यक अधिसूचित करने की शक्ति केंद्र के पास है। लेकिन, इस मुद्दे पर व्यापक परामर्श की आवश्यकता है।
भारत में अल्पसंख्यक का दर्जा–
- संविधान में “अल्पसंख्यक” शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। इसमें केवल अल्पसंख्यक शब्द का उल्लेख किया गया है। अल्पसंख्यकों के अधिकारों को अनुच्छेद-29 और 30 के तहत वर्णित किया गया है।
- हालांकि, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 का उपयोग करते हुए मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसियों को ‘अल्पसंख्यक’ घोषित किया है।
- वर्ष 2002 के टी.एम.ए. पाई मामले में उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया था। न्यायालय के अनुसार भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक के निर्धारण में ‘राज्य’ को एक इकाई के रूप में माना जाना चाहिए, न कि पूरे देश की जनसंख्या को इसका आधार बनाना चाहिए।
अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त करने के लाभ
- अल्पसंख्यक समुदायों को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही विशेष योजनाओं का लाभ मिलता है।
- उन्हें अपने शैक्षणिक संस्थानों और ट्रस्टों के संचालन की स्वतंत्रता दी जाती है।
स्रोत –द हिन्दू