हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने यह जानकारी दी है कि हरित बॉन्ड को जारी करने संबंधी लागत अन्य बॉन्डों की तुलना में अधिक है। वर्ष 2015 के बाद जारी किये गए 5 से 10 वर्षों के मध्य परिपक्वता अवधि वाले हरित बॉन्डों के लिये औसत कूपन दर सामान्यतः कॉर्पोरेट और सरकारीबॉन्डों की तुलना में अधिक है। हालाँकि अमेरिकी डॉलर के लिये10 वर्ष या उससे अधिक अवधि वाले हरित बॉन्डों की कूपन दर, कॉर्पोरेट बॉन्डों से कम थी।
मुख्य तथ्य:
- विदित है कि भारत में अधिकांश हरित बॉन्ड सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों या बेहतर वित्तीय स्थिति वाले कॉर्पोरेट द्वारा ही जारी किये जाते हैं।
- निजी क्षेत्र के हरित बॉन्ड जारीकर्ताओं ने, इसके गैर-जारीकर्ताओं की तुलना में ऋण-संपत्ति अनुपात से संबंधित कम सूचनाएँ प्रदान की।
- मार्च, 2018 तक, भारत में जारी किये गए कुलबॉन्डोंमें हरितबॉन्ड केवल 0.7% थे, जबकि वर्ष 2020 के आँकड़ों के अनुसार गैर-पारंपरिक ऊर्जा के लिये दिया गया बैंक ऋण, ऊर्जा क्षेत्र पर बैंक बकाए का 9% है।
- इसमें उच्च उधारलागत सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौती रही है और ऐसा मुख्यतः असममित जानकारी के कारण हुआ।
- इस संदर्भ में देश मेंएक बेहतर सूचना प्रबंधन प्रणाली विकसित किये जाने की आवश्यकता है, जिससेपरिपक्वता अवधि के बेमेल तथालागत उधार को कम करने में और इस क्षेत्र में कुशल संसाधन आवंटनमें मदद मिलेगी।
हरित बॉन्ड:
- हरित बॉन्ड, अन्य बॉन्डों की ही तरह होते हैं, लेकिन इनके माध्यम से केवल हरित अर्थात् पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं में ही निवेश किया जा सकता है।
- इनमें अक्षय ऊर्जा, कम कार्बन उत्सर्जन, स्वच्छ परिवहन तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन जैसी परियोजनाएँ शामिल होती हैं।
- विश्व बैंक तथा यूरोपीय निवेश बैंक द्वारा पहली बार वर्ष 2007 में यहबॉन्ड लाए गए थे।
- भारत में सबसे पहले हरित बॉन्ड येस बैंक ने वर्ष 2015 में जारी किये थे।
Source – The Hindu