स्वास्थ्य रिपोर्ट : नीति आयोग
हाल ही में जारी की गई नीति आयोग की रिपोर्ट द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल में अंतराल को रेखांकित करती है ।
रिपोर्ट में रेखांकित द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं में अंतरालः
- तृतीयक देखभाल के अंतर्गत सुविधा-आधारित देखभाल में रोगी संख्या के अनुपात में सामान्य डॉक्टरों, विशेषज्ञों और आपातकालीन विभागों में समर्पित नसिंग स्टाफ जैसे प्रशिक्षित मानव संसाधनों की कमी विद्यमान है।
- सभी अस्पतालों में क्रिटिकल केयर सेवाएं अलग-अलग हैं, किंतु सामान्यतः छोटे जिला अस्पतालों में इनका अभाव था।
- भारत भर के जिला अस्पतालों में केवल 3% से 5% बिस्तर ही आपातकालीन देखभाल के लिए आरक्षित हैं।
- द्वितीयक स्तर के सरकारी अस्पतालों (जिला अस्पतालों) ने मामलों के प्रबंधन के लिए मानक संचालन प्रक्रिया, मॉकड्रिल, नियमित ऑडिट आदि के मामले में तृतीयक स्तर के अस्पतालों (मेडिकल कॉलेजों) की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।
द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल के लिए मुख्य सिफारिशें:
- एक मजबूत एकीकृत आपातकालीन देखभाल सेवा प्रणाली विकसित करना;
- मौजूदा अस्पताल-पूर्व सेवाओं जैसे एम्बुलेंस सेवाओं को मजबूत करना;
- आपदाओं के दौरान चिकित्सा देखभाल का कुशल संचालन सुनिश्चित करना;
- ब्लड बैंक से संबंधित सेवाओं का विस्तार करना;
- आपातकालीन देखभाल सेवाओं के लिए निःशुल्क उपचार सुनिश्चित करने हेतु तंत्र विकसित करना;
- आपातकालीन सेवाओं के निरंतर उन्नयन को सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय/राज्य स्तरीय समर्पित कुशल वित्त पोषण तंत्र बनाना आदि।
भारत में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल : यह स्वास्थ्य प्रणाली के साथ व्यक्तियों और परिवारों के बीच संपर्क का प्रथम स्तर है। इसके अंतर्गत सेवाएं अग्रलिखित के माध्यम से प्रदान की जाती हैं: ग्रामीण क्षेत्रों में उप-केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC), शहरी क्षेत्रों में हेल्थपोस्ट्स और परिवार कल्याण केंद्र।
द्वितीयक स्वास्थ्य देखभाल : PHC से रोगियों को उपचार के लिए बेहतर अस्पतालों के विशेषज्ञों के पासरेफर किया जाता है। प्रखंड स्तर पर जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शामिल हैं।
तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल : विशेष परामर्शी देखभाल, सामान्यतया प्राथमिक और द्वितीयक चिकित्सा देखभालसे रेफ़ल पर प्रदान की जाती है। ये सेवाएं चिकित्सा महाविद्यालयों और उन्नत चिकित्सा अनुसंधान संस्थानों द्वारा प्रदान की जाती हैं।
स्रोत – द हिन्दू