स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़े वर्गों का आरक्षण

स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़े वर्गों का आरक्षण

हाल ही में केंद्र, स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़े वर्गों (OBCs) के आरक्षण की अनुमति के लिए उच्चतम न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर करने पर विचार कर रहा है।

केंद्र सरकार स्थानीय निकायों और नगर निगमों में OBC के राजनीतिक आरक्षण की अनुमति हेतु उच्चतम न्यायालय में एक समीक्षा याचिका दायर करेगी, जब तक कि राज्य उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित तीन-स्तरीय मापदंड प्रक्रिया का पालन नहीं करते हैं।

इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने OBCs के पक्ष में 27% आरक्षण को समाप्त करने का निर्णय दिया था। यह आरक्षण महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश ने अपने स्थानीय निकायों में लागू किया था।

उच्चतम न्यायालय का यह आदेश, कृष्ण मूर्ति वाद में दिए गए निर्णय पर आधारित है। यह आदेश वर्ष 2010 में पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने दिया था। यह वाद स्थानीय निकायों में आरक्षण के मुद्दे से संबंधित था।

इस निर्णय में इस बात पर बल दिया गया था कि राजनीतिक भागीदारी पर बाधाएं शिक्षा और रोजगार तक पहुंच को सीमित करने वाली बाधाओं के समान प्रकृति की नहीं हैं।

तीन-स्तरीय मापदंड में शामिल हैं:

  • राज्य के भीतर एक समर्पित आयोग की स्थापना करना। यह आयोग स्थानीय निकायों के संबंध में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की समसामयिक अनुभवजन्य जांच करेगा।
  • आयोग की सिफारिशों के अनुसार स्थानीय निकाय-वारप्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण का 5 अनुपात निर्धारित करना।
  • आरक्षण अनुसूचित जाति (SCs), अनुसूचित जनजाति (STs) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) के संयुक्त पक्ष में आरक्षित सीटों के कुल 50% से अधिक नहीं होना चाहिए।

स्रोत – द हिन्दू

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