स्टॉकहोम+50 सम्मेलन

स्टॉकहोम+50 सम्मेलन

हाल ही में ‘स्टॉकहोम+50’ संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में आयोजित किया गया एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन है ।

इस सम्मेलन की थीम है- ‘स्टॉकहोम+50: सभी की समृद्धि के लिए एक स्वस्थ ग्रह- हमारी जिम्मेदारी, हमारा अवसर’।

वर्ष 1968 में, स्वीडन ने पहली बार स्टॉकहोम सम्मेलन के विचार का प्रस्ताव रखा था। यह सम्मेलन, मानव पर्यावरण पर वर्ष 1972 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया जा रहा है।

वर्ष 1972 के सम्मेलन ने पहली बार पर्यावरण को एक महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दा बनाया था।

इसके प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं:

  • विकासशील देशों को सहायता,
  • वन्य जीवन और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा,
  • प्रदूषण को नियंत्रित करना,
  • मानवाधिकारों पर बल देना आदि।

स्टॉकहोम सम्मेलन का महत्व:

  • इसने संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की कार्य सीमाओं को विस्तारित किया है, जो अब तक देशों की संप्रभुता की अवधारणा पर निर्भर थी।
  • इसने सर्वहित के लिए संयुक्त कार्रवाई के महत्व पर बल दिया।
  • घोषणा में स्पष्ट रूप से राष्ट्रों के उनकी पर्यावरण नीतियों के अनुसार उनके संसाधनों का दोहन करने के संप्रभु अधिकार को स्वीकार किया गया है।
  • स्टॉकहोम सम्मेलन ने वैश्विक असमानता को भी रेखांकित किया।
  • भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऐसे समय में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देने की तात्कालिकता पर सवाल उठाया था, जब बहुत सारे लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे हों।
  • पिछले 50 वर्षों में पर्यावरणीय चुनौतियों के संबंध में जागरूकता बढ़ी है।
  • इससे राष्ट्रीय पर्यावरण एजेंसियों का प्रसार हुआ है। साथ ही, वैश्विक पर्यावरण कानून के विकास को बढ़ावा भी मिला है।

स्रोत –द  हिन्दू

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