स्टॉकहोम कन्वेंशन की दीर्घस्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर समीक्षा समिति की 18वीं बैठक
हाल ही में स्टॉकहोम कन्वेंशन की दीर्घस्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर समीक्षा समिति की 18वीं बैठक (POPRC-18) संपन्न हुई है ।
- समिति ने विचाराधीन पांच रसायनों में से चार की समीक्षा की है।
- इसने स्टॉकहोम कन्वेंशन के अनुलग्न (Annex)- A के तहत डीक्लोरेन प्लस (ज्वाला मंदक) और UV-328 (स्टेबलाइजर) को सूचीबद्ध करने की सिफारिश की है।
- मीडियम चेन क्लोरीनेटेड पैराफिन्स (ज्वाला मंदक) और लॉन्ग-चेन परफ्लोरो कार्बोक्सिलिक एसिड्स (PFCAs) के मामले में जोखिम प्रबंधन आकलन तैयार किया जाएगा।
- इसके बाद इन पर समिति की अगली बैठक में विचार किया जाएगा।
- क्लोरपाइरीफोस (कीटनाशक) के मामले में समिति ने ड्राफ्ट रिस्क प्रोफाइल पर अपना विचार स्थगित करने का निर्णय लिया है।
स्टॉकहोम कन्वेंशन के बारे में
यह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को दीर्घस्थायी कार्बनिक प्रदूषकों (POPs) से सुरक्षित रखने वाली एक वैश्विक संधि है।
POPs ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं, जोः
- लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं,
- सजीवों में जैव-संचित होते रहते हैं,
- मानव स्वास्थ्य/ पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं और
- स्रोत से काफी दूर तक यात्रा कर पर्यावरणीय प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
यह कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है। भारत ने वर्ष 2006 में स्टॉकहोम कन्वेंशन की अभिपुष्टि की थी।
पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत वर्ष 2018 में POPs के विनियमन संबंधी नियम अधिसूचित किए थे।
अन्य खतरनाक रसायनों और अपशिष्टों से संबंधित कन्वेंशंसः
- खतरनाक अपशिष्टों की सीमापारीय आवाजाही के नियंत्रण और उनके निपटान पर बेसल कन्वेंशन इसे वर्ष 1989 में अपनाया गया था।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कुछ खतरनाक रसायनों और कीटनाशकों के लिए पूर्व सूचित सहमति प्रक्रिया पर रॉटरडैम कन्वेंशन (Rotterdam Convention on the Prior Informed Consent) को वर्ष 1998 में अपनाया गया था।
स्रोत – द हिन्दू