हाल ही में अमेरिका ने भारत के नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की सदस्यता ग्रहण करने की घोषणा की है। COP-26 में, अमेरिका ने सौर गठबंधन के 101वें सदस्य केरूप में शामिल होने की घोषणा की है। अमेरिका की इच्छा सौर-नेतृत्व वाले दृष्टिकोण के माध्यम से वैश्विक ऊर्जा रूपांतरण को उत्प्रेरित करने की है।
यह कदम गठबंधन को मजबूत करेगा। साथ ही, विश्व को ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत प्रदान करने पर भविष्य की कार्रवाई को बढ़ावा देगा।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन एक संधि आधारित अंतर-सरकारी संगठन है। यह सौर-संसाधन-समृद्ध देशों (जो पूर्णतः या आंशिक रूप से कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच स्थित हैं) के गठबंधन के रूप में कार्य करता है ताकि उनकी विशेष ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके।
इसे भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा 30नवंबर 2015 को पेरिस में पक्षकारों के सम्मेलन (COP21) के दौरान लॉन्च किया गया था।
इसका उद्देश्य सदस्य देशों की आवश्यकताओं के लिए भविष्य के सौर उत्पादन, भंडारण और प्रौद्योगिकियों की प्राप्ति हेतु मार्ग प्रशस्त करना है। यह कार्य वर्ष 2030 तक 1000 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक निधि एकत्रित करके संपन्न किया जाएगा।
भारत के लिए महत्व
- भारत को वैश्विक मंच पर अग्रणी स्थान प्रदान करता है,क्योंकि दो प्रमुख ऊर्जा उपभोक्ता देशों (ग्लोबल साउथ से भारत और ग्लोबल नॉर्थ से फ्रांस) ने ISA की सरंचना को स्थापित करने हेतु महत्वपूर्ण उपाय किए हैं।
- यह भारत की वैश्विक समानता के सिद्धांत को रेखांकित करता है, क्योंकि यह समृद्ध देशों के साथ-साथ फिजी और दक्षिण सूडान जैसे देशों को भी प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।
संबंधित तथ्य :
- इससे पूर्व COP26 में, अमेरिका ‘वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड’ (OSOWOG) पहल की संचालन समिति में शामिल हुआ था। इसमें ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, ब्रिटेन और भारत भी शामिल हैं।
- OSOWOG अवधारणा को वर्ष 2018 के अंत में सौर गठबंधन की पहली बैठक में सौर ऊर्जा के लिए एकल वैश्विक ग्रिड के रूप में प्रकट किया गया था।
स्रोत – द हिन्दू