सुशासन सूचकांक 2019
चर्चा का कारण
- 25 दिसंबर सुशासन दिवस पर देश में सुशासन की स्थिति का आकलन करने के लिए भारत सरकार द्वारा सुशासन सूचकांक जारी किया गया। इसे कार्मिक मंत्रालय के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग ने सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस हैदराबाद की तकनीकी मदद से तैयार किया है।
- ज्ञातव्य है कि पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मतिथि 25 दिसम्बर को 2014 से सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है.
परिचय
- भारत राज्यों का संघ है जिसमें केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का संवैधानिक रूप से स्पष्ट बँटवारा किया गया है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों के मध्य संबंध एवं उनके अधिकार
- क्षेत्रें को संविधान की सातवीं अनुसूची केन्द्र सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची के माध्यम से स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
- समान संवैधानिक व्यवस्था, संस्थागत स्वरूप, शक्तियों, भूमिकाओं एवं जिम्मेदारी की एकरूपता तथा स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अभी तक केन्द्र सरकार के लगातार समर्थन के बावजूद राज्यों में
- शासन की गुणवत्ता और लोगों के जीवन स्तर में व्यापक असमानताएं हैं। हालाँकि राज्यों के आकार, स्थलाकृति और सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं में पर्याप्त भिन्नता है लेकिन सभी एक ही संविधान और एक समान राष्ट्रीय नीतियों एवं
- कानूनों द्वारा शासित होते हैं। इन सबके बावजूद भी कुछ राज्यों ने सुशान के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करते हुए अच्छे परिणाम प्राप्त किये हैं जबकि कुछ राज्यों ने सुशासन की दिशा में बेहतर भविष्य के संकेत देने शुरू कर दिये हैं।
सुशासन क्या है
- सुशासन सूचकांक 2019 की अवधारणा दुनिया के लिए नयी नहीं है। समकालीन दुनिया में इसका उपयोग सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रें में काम करने वाले संगठनों/संस्थानों के संदर्भ में विभिन्न तरीकों से किया जा रहा है। हालाँकि अभी तक इसकी सर्वमान्य परिभाषा नहीं दी जा सकी है।
- समाज के समुचित विकास, उसकी शांति एवं समृद्धि के लिए सुशासन पहली शर्त है। सुशासन के अंतर्गत बहुत सी चीजें आती हैं जिनमें अच्छा बजट, सही प्रबंधन, कानून का शासन, सदाचार आदि शामिल हैं। इसके विपरीत पारदर्शित की कमी या संपूर्ण अभाव, जंगलराज, लोगों की कम भागीदारी, भ्रष्टाचार का बोलबाला आदि दुःशासन के लक्ष्य हैं।
- शासन को प्रभावी व सक्षम बनाकर, विकासात्मक प्रक्रिया को उत्पादनशील बनाने व नयी दिशा प्रदान करने के लिए जिम्मेदारी, पारदर्शिता, भागीदारी और सशक्तीकरण पर जोर दिया जाना ही सुशासन है।
- सुशासन नव उदारवाद का ही एक रूप है। नव उदारवाद में भागीदारी, समावेशी चरित्र, पारदर्शिता महत्वपूर्ण विषय है। सुशासन इस दौर में एक ऐसी परिकल्पना है जिसमें सबको साथ लेकर चलने की शक्ति होनी चाहिए। इसमें न्यूनतम लालफीताशाही के साथ नागरिक समाज की व्यापक सहभागिता होनी चाहिए।
- सुशासन न केवल रचनात्मक भागीदारी को प्रोत्साहित करता है, बल्कि विभिन्न तत्वों को एक साथ लाकर उसकी
- जन स्वीकार्यता को भी आगे बढ़ाता है। सुशासन संस्थागत समावेशन को बढ़ावा देता है।
सुशासन सूचकांक के मुख्य बिंदु
- जीजीआई का उद्देश्य सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदशों में सुशासन की स्थिति की तुलना करने के लिए मात्रत्मक डाटा उपलब्ध कराना, शासन में सुधार के लिए उचित रणनीति बनाने और उन्हे लागू करने में उन्हे सक्षम बनाना और उनके यहाँ परिणाम उन्मुख दृष्टिकोण और प्रशासन की स्थापना करना है।
- इस सूचकांक को तैयार करने के लिए 10 महत्वपूर्ण क्षेत्रें में राज्यों के अभिशासन को आधार बनाया गया है कृषि एवं संबंधित क्षेत्र, वाणिज्य एवं उद्योग, मानव संसाधन विकास, लोक स्वास्थ्य, सार्वजनिक अवसंरचना एवं उपयोगिता, आर्थिक अभिशासन, सामाजिक कल्याण एवं विकास, न्यायिक एवं सार्वजनिक सुरक्षा, पर्यावरण और नागरिक केन्द्रित अभिशासन।
- इन सभी क्षेत्रें का आकलन 5 उपक्षेत्रें/ संकेतकों के आधार पर किया गया है। सभी संकेतकों का भार भी अलग-अलग है जिसके आधार पर समग्र रैंकिंग तैयार की गयी है।
- सुशासन सूचकांक में रैंकिंग प्रदान करने के लिए राज्यों को उनके आकार, भौगोलिक स्थिति तथा प्रशासनिक स्वरूप को ध्यान में रखते हुए तीन वर्गों में विभाजित कर समग्र एवं क्षेत्रवार रैंकिंग प्रदान की गयी है।
- मध्यप्रदेश, मिजोरम तथा दमन और दीव कृषि एवं संबंधित क्षेत्र में खाद्यान्न उत्पादन, बागवानी उत्पादन, दूध एवं मांस उत्पादन और फसल विकास आदि क्षेत्रें में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं।
- वाणिज्य एवं उद्योग की श्रेणी में बड़े राज्यों में झारखण्ड, पहाड़ी राज्यों में उत्तराखण्ड और केन्द्रशासित प्रदेशों में दिल्ली को शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है।
- पर्यावरण श्रेणी में पश्चिम बंगाल बड़े राज्यों में तथा जम्मू कश्मीर पहाड़ी राज्यों में शीर्ष पर है।
- सामाजिक कल्याण एवं विकास के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ बड़े राज्यों में और पहाड़ी राज्यों में मेघालय सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाला राज्य है।
- आर्थिक अभिशासन में बड़े राज्यों में कर्नाटक तथा पहाड़ी राज्यों में उत्तराखण्ड ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है।
- लोक स्वास्थ में केरल, सार्वजनिक अवसंरचना एवं उपयोगिता में तमिलनाडु तथा हिमाचल प्रदेश ने अपने वर्ग में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है।
सुशासन के लिए सरकारी प्रयास
- कृषि एवं संबंधित क्षेत्रः सरकार 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने और कृषि को लाभदायक बनाने की दिशा में काम रही है। भारत सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी इस क्षेत्र के लिए प्रभावशाली पहल कर रहीं हैं, जिनका विशेष ध्यान कृषि लागत, प्रक्रिया और परिणाम पर केन्द्रित है। कुछ पहलें जैसे बुनियादी ढाँचे का निर्माण (जैसे सिंचाई व्यवस्था, भंडारण इत्यादि), कृषि विपणन, फसल बीमा, कृषि में तकनीकी विस्तार, स्थायी कृषि मिशन आदि शामिल हैं। मध्य प्रदेश सरकार कृषि क्षेत्र में विकास विशेष ध्यान दिया है, जैसे- सिंचाई के नहरों का विस्तार किया जाना, बाजार में फसलों की कीमतों के घटने से किसानों के नुकसान की भरपाई के लिए आवंटन योजना आदि।
- वाणिज्य एवं उद्योगः यह क्षेत्र व्यापार सुगमता, औद्योगिक विकास, सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग प्रतिष्ठान आदि में शासन के पहलुओं को समाहित करता है। केन्द्र एवं राज्य सरकारें उद्योग एवं सेवा क्षेत्र को आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रही हैं। किसी राज्य में उद्योग एवं वाणिज्य का विकास वहां उपलब्ध संसाधनों और क्षेत्र के विकास के समर्थनकारी कानूनों एवं उनके अनुपालन पर निर्भर करता है। मेक इन इंडिया, इनवेस्ट इन इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया और ई-बिज आदि पहलों के माध्यम से सरकार ने देश में निवेश एवं व्यवसाय सुगमता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर शासन योजना प्रस्तुत की है।
- मानव संसाधन विकासः इस क्षेत्र में प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा, कौशल विकास और अन्य संबंधित क्षेत्रें में शिक्षा संबंधी पहलुओं को शामिल किया गया है। सरकार शिक्षा की एक समान पहुँच और गुणवत्ता में सुधार के लिए निरंतर प्रयासरत है। केन्द्र सरकार ने इसके लिए सर्व शिक्षा अभियान (ैै।) दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया आदि पहलों के माध्यम से मानव संसाधन विकास में जोर दिया है। सभी तक शिक्षा की पहुँच उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने शिक्षा को मूल अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान कर (शिक्षा का अधिकार-अधिनियम, 2005) राज्यों के लिए इस प्रावधानों को बाध्यकारी बना दिया गया।
- लोक स्वास्थ्यः लोक स्वास्थ्य में प्राथमिक, द्वितीयक एवं विशेष स्वास्थ्य देखभाल के साथ अन्य स्वास्थ्य संबंधी प्रशासनिक पहलुओं को शामिल किया जाता है।
- संविधान में स्वास्थ्य देखभाल की जिम्मेदारी राज्यों को प्रदान की गयी है जो राज्यों को अपने निवासियों के पोषण स्तर को बढ़ाने और उनके जीवन स्तर तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए जिम्मेदार बनाता है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र को प्रभावकारी बनाने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, बाल स्वच्छता मिशन, इन्द्रधनुष योजना आदि पहलों को आगे बढ़ाया। वर्ष 2017 में सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की घोषणा की गयी जिसमें यह प्रावधान किया गया कि जीडीपी का 2-5» लोक स्वास्थ्य पर खर्च किया जायेगा। सरकार द्वारा चालू की गयी आयुष्मान भारत योजना के तहत देश के लगभग सभी गरीब माने जाने वाले लोगों को 5 लाख तक के मुफ्रत बीमा की सुविधा प्रदान की जा रही है।
- सार्वजनिक अवसंरचनाः बेहतर एवं दक्ष भौतिक बुनियादी ढांचा सतत विकास के लिए एक आवश्यक तत्व है। मलिन बस्तियों एवं ग्रामीण इलाकों में रहने वाले अधिकांश लोगों को स्वच्छ पानी तक उपलब्ध नहीं हो पाता है। सतत विकास लक्ष्यों एवं विभिन्न विकास परियोजनाओं में स्वच्छ जल एवं स्वच्छता प्रावधान विशेष रूप से शामिल किया जाता है। भारत सरकार ने सेवाओं तक पहुँच में सुधार करने और नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए बुनियादी ढाँचा तैयार करने के लिए कायाकल्प एवं शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (।डत्न्ज्) , स्मार्ट भारत मिशन, राष्ट्रीय सौर मिशन, शहरी ज्योति अभियान जैसी कई योजनाएँ चलाई है।
- आर्थिक प्रशासनः इस क्षेत्र में राजकोषीय प्रबंधन, राजस्व प्रबंधन, वित्तीय समावेशन आदि क्षेत्रें को समाहित करने वाले सरकार के आर्थिक प्रबंधन को शामिल किया गया है। राज्यों के बीच विकास और शासन को मापने में अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण स्थान हेाता है।
राज्यों के आर्थिक विकास एवं वृद्धि के प्रमुख मापक हैं –
- सकल राज्य घरेलू उत्पाद वृद्धि दर
- प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि
- सकल राज्य घरेलू उत्पाद पर राजकोषीय घाटा
- सकल राज्य घरेलू उत्पाद और सार्वजनिक ट्टण अनुपात
सामाजिक कल्याण : समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों का कल्याण राज्य के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में सामाजिक कल्याण के महत्वपूर्ण पहलू हैं- स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, रोजगार आदि।
- सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में केन्द्र सरकार की पहलें, जैसे- प्रधानमंत्री जनधन योजना, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना, प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना आदि। वहीं राज्यों ने भी सामाजिक कल्याण की अनेक योजनाएं चलाई हैं, जैसे- राज्यों में वृद्धावस्था पेंशन योजनाएं, विधवा पेंशन योजनाएं, बालिकाओं की शिक्षा एवं सशक्तिकरण से संबंधित योजनाएं आदि।
- न्यायिक एवं जन सुरक्षाः न्याय सुशासन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा के लिए न्याय के साथ जन सुरक्षा की व्यवस्था को बनाये रखना राज्यों के लिए अति आवश्यक है। जन सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि समाज में हो रहे अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस बल पर ध्यान केन्द्रित किया जाये और पुलिस कर्मियों को पर्याप्त मात्र में तैनात किया जाये।
- पर्यावरणः वैश्विक तापन, प्रदूषण, अनियमित होती पर्यावरणीय दशाओं को नियंत्रित करते हुए सतत विकास को आगे बढ़ाना पर्यावरणीय प्रशासन के अंतर्गत आता है। भविष्य की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं, जैसे- नमामि गंगे, राष्ट्रीय हरित भारत मिशन, राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रम, वन्यजीव आवासों के समेकित विकास की योजना, प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरणीय प्रणालियाें का संरक्षण आदि।
- नागरिक केन्द्रित शासनः नागरिकों के कल्याण और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नागरिक केन्द्रित शासन किसी भी राष्ट्रीय राज्य और स्थानीय सरकार के लिए महत्वपूर्ण है। नागरिक केन्द्रितता का उद्देश्य सुशासन प्रदान करना ही है।
- इसके लिए सूचना का अधिकार, नागरिक चार्टर, सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ ऑनलाइन सेवाओं की उपलब्धता आदि का प्रावधान किया गया है।
सुशासन की राह में चुनौतियाँ
सुशासन की स्थापना में सरकार जिन चुनौतियों का सामाना करती है, उनमें सर्वप्रमुख हैं- शासन के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का प्रभावी समन्वय। एक अच्छा शासन प्रदान करने के लिए सरकार को संसदीय सर्वोच्चता एवं न्यायिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करना पड़ता है। राज्य की शासन व्यवस्था में निजी क्षेत्र एवं नागरिक समाज का भी योगदान अति महत्वपूर्ण है जिनकी स्पष्ट भूमिका एवं जिम्मेदारी को चिह्नित किये जाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में देखा जाए तो सुशासन के समक्ष कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं –
- शासन संस्थागत संरचना को मजबूत करना
- सिविल सेवाओं एवं नौकरशाही के काम-काज में सुधार
- नागरिकों का न्यायपालिका में विश्वास बनाने के लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता एवं जवाबदेहिता को सुनिश्चित एवं सुदृढ़ किया जाना
- उपभोक्ता हितों की रक्षा के लिए निजी एवं सरकारी दोनों क्षेत्रें की जवाबदेही तय करना।
- नागरिकों को उनके अधिकारों एवं दायित्वों के बारे में शिक्षित करना और विकास की गतिविधियों का भागीदार बनाना।
- देश की विशालता उसकी सामाजिक और धार्मिक विविधता, परंपराएं और विश्व स्तर पर हो रही घटनाओं का दबाव जनता के समक्ष कई तरह की चुनौतियां प्रस्तुत कर रहा है।
आगे की राह
- आम आदमी की दृष्टि में सुशासन का तात्पर्य सुलभ, जवाबदेह एवं किफायती शासन है। पिछले तीन दशकों में हुए वैश्विक विकास ने सुशासन की धारणा को व्यापक बनाकर इसके दायरे में सरकार, निजी क्षेत्र एवं नागरिक सभी को समाहित कर लिया है।
- शासन में परिवर्तन लाने के लिए सिर्फ सरकार में सुधार पर्याप्त नहीं होता इसके लिए आवश्यक है कि विकास को बढ़ाने वाली नीतियों का निर्माण, उनके अनुपालन में आने वाली बाधाओं का उन्मूलन, आवश्यक एवं अनिवार्य सेवाओं की समयबद्ध उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाये।
- इसके अलावा देखा जाए तो सुशासन के क्षेत्र में मीडिया की भूमिका सर्वोच्च होती है। यह प्रशासन को भटकाव से बचाती है उसके प्रत्येक काम पर पैनी नजर भी रखती है। इस प्रकार सुशासन तभी संभव है जब सरकार के तीनों अंग (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका), समाज के सभी लोग और मीडिया, सभी शुद्ध मन से सहयोग करें व अपने दायित्वों को समझें और उनका पूरी तरह निर्वाह करें। राजनीतिज्ञों एवं अफसरों का भ्रष्ट गठजोड़, जनता का जागरूक न होना, मीडिया की संवेदनहीनता या अपर्याप्त बजटीय प्रावधान सुशासन की राह में रोड़ा हैं,
- इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि सरकार कुशल एवं प्रभावी सेवाओं पर ध्यान केन्द्रित करे जिससे सरकारी योजनाओं का लाभ प्रत्येक व्यक्ति को मिले।