आनुवंशिक रूप से संशोधित सुअर की किडनी मानव में ट्रांसप्लांट की गई

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आनुवंशिक रूप से संशोधित सुअर की किडनी मानव में ट्रांसप्लांट की गई

हाल ही में जेनेटिकली इंजीनियर्ड सुअर की किडनी को एक ब्रेन डेड व्यक्ति में ट्रांसप्लांट किया है, और यह 32 दिनों के बाद भी अच्छी तरह से काम कर रही है।

यह किसी इंसान में जीन-एडिटेड सुअर की किडनी के काम करने का सबसे लम्बा रिकॉर्ड है। साथ ही ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए अंगों की वैकल्पिक और निरंतर उपलब्धता की दिशा में एक सफल प्रयास भी है।

यह उपलब्धि दर्शाती है कि सुअर की किडनी केवल एक जेनेटिकल मॉडिफिकेशन के द्वारा और एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन या डिवाइस के बिना शरीर द्वारा रिजेक्ट हुए बिना कम से कम 32 दिनों तक मानव किडनी के फंक्शन्स को परफॉर्म कर सकती है।

ज़ेनो ट्रांसप्लांटेशन

  • ज़ेनो ट्रांसप्लांटेशन में किसी पशु से जीवित कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों को एक मानव में ट्रांसप्लांट इम्प्लांट या इंफ्यूशन किया जाता है।
  • ज़ेनो ट्रांसप्लांटेशन में अधिकांशतः सूअरों का उपयोग किया जा रहा है, क्योंकि उनके अंग शरीर – विज्ञान की दृष्टि से मनुष्यों के अंगों के समान ही होते हैं।
  • सुअर की किडनी का उपयोग इसलिए किया गया है, क्योंकि वह संरचना में मानव किडनी के समान होती है और लगभग समान आकार की होती है।

ज़ेनोट्रांसप्लांटेशन (xenotransplantation) प्रक्रिया:

  • सुअर के जीनोम को संशोधित या परिवर्तित करने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया जाता है।
  • इसमें किसी भी प्रतिरक्षा संबंधी जटिलता को कम करने के लिए सुअर के चार जींस को ‘निष्क्रिय’ करना तथा छह मानव जींस को जोड़ना शामिल होता है।
  • पिछले साल, मैरीलैंड विश्वविद्यालय के सर्जनों ने सुअर के दिल वाले एक मरते हुए आदमी को बचाने की कोशिश की और वह दो महीने तक जीवित रहा।
  • हालिया वर्षों में CRISPR – Cas9 जीनोम एडिटिंग के प्रयोग के कारण जेनो ट्रांसप्लांटेशन में महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई है।
  • इस तकनीक से सुअर से ऐसे अंगों का निर्माण करना आसान हो गया है, जिन पर मानव प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा हमला किए जाने की कम संभावना होती है।

लाभ:

  • ट्रांसप्लांटेशन योग्य अंगों की कमी को दूर किया जा सकता है।
  • प्राण घातक रोगों से पीड़ित लोगों को अंगों की वैकल्पिक आपूर्ति संभव हो सकेगी।
  • अनुसंधान के नये क्षेत्र खुलेंगे।

चिंताएं:

  • मानव शरीर द्वारा ऐसे अंगों की अस्वीकृति दर बहुत ज्यादा है,
  • संक्रमण का बहुत अधिक जोखिम रहता है,
  • अंग द्वारा सभी कार्यात्मक भूमिकाएं निभाना मुश्किल है,
  • पशु कल्याण से जुड़े मुद्दे सामने आते हैं आदि ।

स्रोत – बिजनेस स्टैण्डर्ड 

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