‘स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण तक पहुंच’ सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषित
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण तक पहुंच को सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषित किया है।
भारत ने महासभा के एक संकल्प के पक्ष में मतदान किया है। यह संकल्प स्वच्छ, स्वस्थ और सतत पर्यावरण के अधिकार को मानवाधिकार का दर्जा प्रदान करता है।
संकल्प में यह भी स्वीकार किया गया है कि स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय कानून से संबंधित है।
यह इस बात की भी पुष्टि करता है कि इसके प्रसार के लिए पर्यावरण से जुड़े बहुपक्षीय समझौतों का पूर्ण कार्यान्वयन जरुरी है। यह संकल्प कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है। इसे मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 में शामिल नहीं किया गया है।
इससे पहले वर्ष 2021 में, जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने एक संकल्प पारित किया था। यह संकल्प स्वस्थ और सतत पर्यावरण तक पहुंच को सार्वभौमिक अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान करता है।
वर्ष 1972 में आयोजित स्टॉकहोम संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सम्मेलन का समापन पर्यावरण के मुद्दों को वैश्विक स्तर पर रखने के संकल्प के साथ हुआ था।
संकल्प का महत्व–
- पर्यावरणीय अन्याय और संरक्षण में भेदभाव को कम करने में मदद मिलेगी।
- यह लोगों को सशक्त करेगा, विशेष रूप से जोखिमपूर्ण परिस्थितियों में रहने वाले लोगों को। इनमें पर्यावरणीय मानवाधिकार रक्षक, बच्चे, युवा, महिलाएं और देशज लोग शामिल हैं
- यह संकल्प पृथ्वी के तिहरे संकट, अर्थात् जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता को नुकसान और प्रदूषण से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है।
- यह देशों की उनके पर्यावरण और मानवाधिकार संबंधी दायित्वों तथा प्रतिबद्धताओं के कार्यान्वयन में तेजी लाने में मदद करेगा।
पर्यावरण और मानवाधिकार से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 21: यह जीवन के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। इसमें बीमारी और संक्रमण के खतरे से मुक्त पर्यावरण का अधिकार भी शामिल है।
- अनुच्छेद 48A: राज्य पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करेगा तथा देश के वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
- अनुच्छेद 51A(g): प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करे।
स्रोत –द हिन्दू