सारस क्रेन को रखने के आरोप में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज

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सारस क्रेन को रखने के आरोप में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज

हाल ही में, उत्तर प्रदेश के मांडखा के एक व्यक्ति पर वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत मामला दर्ज किया गया।

उस पर अपने गांव में एक घायल सारस क्रेन (Grus Antigone) को अवैध रूप से रखने और उसकी देखभाल करने का आरोप लगाया है।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972

  • सारस आमतौर पर आर्द्रभूमि में पाया जाता है और उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी है। 152-156 सेंटीमीटर की लम्बाई वाला यह पक्षी उड़ने वाला दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 कुछ अपवादों को छोड़कर अनुसूची I-IV के तहत सूचीबद्ध जानवरों की किसी भी प्रजाति को पकड़ने या शिकार करने पर रोक लगाता है।
  • किसी रोगग्रस्त या खतरनाक जानवर या पक्षी का शिकार या मानव जीवन या संपत्ति को खतरा वाले या वैज्ञानिक अनुसंधान या प्रबंधन इसके कुछ अपवाद हैं।

अधिनियम के तहत अपराधों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है;

  • धारा 9, 17A और 2(16) के तहत शिकार;
  • धारा 40, 42, 43, 48, 48A, 49 और अध्याय VA के तहत अनधिकृत रूप से रखना,
  • परिवहन और व्यापार करना; और धारा 27, 29-36 और 38 के तहत संरक्षित क्षेत्रों या पर्यावास विनाश से संबंधित अपराध ।
  • अधिनियम की धारा – 2 (16) के तहत “शिकार” में न केवल एक जंगली या कैप्टिव जानवर को मारने या जहर देने का कार्य शामिल है, बल्कि ऐसे प्रयास को भी अपराध में शामिल किया गया है।
  • WPA के तहत एक “कैप्टिव जानवर” को ऐसे किसी भी जानवर के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसे अनुसूची I-IV में निर्दिष्ट किया गया है, जिसे पकड़कर रखा है, या कैद में रखा गया है।
  • यहां तक कि जानवर या उसके अंडों या घोंसलों के किसी भी हिस्से को नुकसान पहुंचाना या नष्ट करना अधिनियम की धारा 9 के तहत दंडनीय अपराध है।
  • ब्लैक बक, ब्लैक-नेक्ड क्रेन, हूडेड क्रेन, साइबेरियन व्हाइट क्रेन, वाइल्ड याक और अंडमान वाइल्ड पिग जैसे जानवर अनुसूची 1 के अंतर्गत आते हैं।
  • वहीं सामान्य लंगूर, गिरगिट और किंग कोबरा अनुसूची – 2 के अंतर्गत आते हैं।
  • अनुसूची – 3 में चीतल, जंगली सूअर, लकड़बग्घा और नीलगाय शामिल हैं। सारस क्रेन अधिनियम की अनुसूची IV के अंतर्गत सूचीबद्ध है।
  • अधिनियम की धारा – 51 की में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो अधिनियम के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करता है, सिवाय कुछ अपवदों के लिए, तीन साल तक के कारावास या 25,000 रुपये तक जुर्माने या या दोनों से दंडित किया जाएगा। यह लाइसेंस या परमिट के किसी भी नियम, आदेश या शर्तों के उल्लंघन पर भी लागू होता है।
  • हालांकि, 2 अगस्त, 2022 को अधिनियमित 1972 के अधिनियम में नवीनतम संशोधन के अनुसार, जो अभी तक लागू नहीं हुआ है, जुर्माने को बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दिया गया है।
  • यदि अपराध पहली दो अनुसूचियों के तहत जानवरों से संबंधित है, तो 10,000 रुपये के जुर्माने के साथ या उसके बिना तीन से सात साल का कारावास हो सकता है, जो 2022 के संशोधन के बाद बढ़कर 25,000 रुपये हो जाएगा।

राज्यों के अधिकार

  • वर्ष 1976 में, 42वें संशोधन अधिनियम के द्वारा, “वन और जंगली जानवरों और पक्षियों के संरक्षण” के विषय को राज्य से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • हालाँकि, राज्य सरकारों को अभी भी WPA, 1972 के तहत कई शक्तियां प्रदान की गयी हैं। धारा 4 राज्य सरकार को वन्यजीव वार्डन, मानद वन्यजीव वार्डन और अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ एक मुख्य वन्यजीव वार्डन नियुक्त करने की अनुमति देती है।
  • इसके अलावा, धारा 6 राज्य को राज्य वन्य जीव बोर्ड का गठन करने का अधिकार देती है, जिसके अध्यक्ष राज्य के मुख्यमंत्री होते हैं जबकि उपाध्यक्ष वन और वन्यजीव के प्रभारी मंत्री होते हैं।

स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस

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