हाल ही में छत्तीसगढ़ ने कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के आदिवासियों के सामुदायिक वन संसाधन (CER) अधिकारों को मान्यता दी है।
- सामुदायिक वन संसाधन (community forest resources: CER) अधिकारों को मान्यता देने वाला कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान देश का दूसरा संरक्षित क्षेत्र बन गया है। पहला संरक्षित क्षेत्र ओडिशा का सिमलीपाल है।
- सामुदायिक वन संसाधन क्षेत्र साझी वन भूमि है। इसे किसी विशेष समुदाय द्वारा सतत उपयोग के लिए पारंपरिक रूप से सुरक्षित और संरक्षित किया जाता है।
- इसमें किसी भी श्रेणी के वन शामिल हो सकते हैं, जैसेः राजस्व वन, वर्गीकृत और अवर्गीकृत वन, डीम्ड वन,आरक्षित वन, संरक्षित वन, अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान आदि।
- CFR अधिकारों को अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (FRA), 2006 के तहत मान्यता दी गई है।
इसमें निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं:
- यह वनों में रहने वाली ऐसी अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को वन अधिकारों तथा वन भूमि में उपजीविका को मान्यता देता है, जो पीढ़ियों से ऐसे वनों में रह रहे हैं। लेकिन जिनके अधिकारों को दर्ज नहीं किया जा सका है।
- यह समुदाय को स्वयं और दूसरों के द्वारा वन उपयोग के लिए नियम बनाने की अनुमति देता है।
- यह ग्राम सभा को सामुदायिक वन संसाधन सीमा के भीतर वन संरक्षण और प्रबंधन की स्थानीय पारंपरिक प्रथाओं को अपनाने का अधिकार देता है।
वन अधिकार अधिनियम (FRA) निम्नलिखित में सामुदायिक अधिकार (CR) और सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों की मान्यता प्रदान करता है:
- वन्यजीव अभयारण्य,
- टाइगर रिज़र्व,
- राष्ट्रीय उद्यान तथा सभी वन भूमि।
इस निर्णय का महत्व–
- यह ग्रामीणों को सशक्त बनाता है,
- समुदाय आधारित संरक्षण को प्रोत्साहित करता है,
- समुदाय के लिए आजीविका के साधन और खाद्य सुरक्षा को मजबूत करता है।
- वनों की संधारणीयता और जैव विविधता के संरक्षण में वनवासियों की अनिवार्य भूमिका को रेखांकित करता है।
- वनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों में कटौती के कारण वन–आश्रित समुदायों के साथ हुए “ऐतिहासिक अन्याय” को दूर करने का प्रयास करता है।
स्रोत- द हिंदू