सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट 2020-22
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने ‘विश्व सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट 2020-22: एशिया और प्रशांत के लिए क्षेत्रीय सहयोगी रिपोर्ट’ जारी की है।
सामाजिक सुरक्षा को ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों के एक समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं:
- कुशल श्रम बाजारों को बढ़ावा देकर गरीबी और सुभेद्यता को कम करना,
- लोगों को संकट में जाने से बचाना तथा जोखिम और आय नुकसान की स्थिति से स्वयं को बचाने की उनकी क्षमता को बढ़ाना।
- सामाजिक सुरक्षा में विशेष रूप से वृद्धावस्था, बेरोजगारी, बीमारी, दिव्यांगता, मातृत्व आदि से संबंधित स्वास्थ्य देखभाल और आय सुरक्षा उपायों तक पहुंच शामिल हैं।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष–
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र में, 9% आबादी की अब भी सामाजिक सुरक्षा की किसी भी योजना तक पहुंच नहीं।
- इस क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा पर व्यय पिछले दो वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का औसतन 7.5% रहा है। क्षेत्र के लगभग आधे देश 2.6% या उससे भी कम खर्च कर रहे हैं।
- यह 12.9% के वैश्विक औसत से काफी कम है।
- केवल 24.4% भारतीयों को ही किसी ने किसी सामाजिक सुरक्षा लाभ के तहत शामिल किया गया है।
- यह बांग्लादेश के औसत (28.4%) से भी कम है।
- भारत के सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रति व्यक्ति GDP के पांच प्रतिशत से भी कम हैं।
- एशिया प्रशांत क्षेत्र में चार में से तीन कर्मचारियों को बीमारी या कार्य के दौरान होने वाली दुर्घटना की दशा में सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है।
- इस रिपोर्ट में इस क्षेत्र के देशों से ‘उच्च’ विकास पथ पर चलने का सुझाव दिया गया है, जिसमें सामाजिक सुरक्षा की प्राथमिक भूमिका हो।
सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए ‘भारत द्वारा उठाए गए कदम –
- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: इसका उद्देश्य सभी कर्मचारियों और श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ प्रदान करना है। इसमें सामाजिक सुरक्षा से संबंधित मौजूदा सभी श्रम कानूनों को संशोधित और समेकित किया गया है।
- प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन (PMSYM) योजनाः यह असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा और वृद्धावस्था संरक्षण प्रदान करती है।
- मनरेगाः यह एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का मजदूरी आधारित रोजगार प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा को बढाती है।
स्रोत –द हिन्दू