सहकारिता मंत्रालय का गठन
हाल ही में, केंद्र सरकार ने सहकारिता मंत्रालय के रूप में एक नए मंत्रालय का गठन किया है। नवगठित सहकारिता मंत्रालय ‘सहकार से समृद्धि’ या सहयोग के माध्यम से समृद्धि के दृष्टिकोण को लागू करेगा।
साथ ही, सहकारी आंदोलन को सुदृढ़ करने के लिए एक पृथक प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करेगा। यह मंत्रालय सहकारी समितियों के लिए कारोबार में सुगमता हेतु प्रक्रियाओं को कारगर बनानेऔर बहु-राज्य सहकारी समितियों (MSCS) के विकास को सक्षम बनाने की दिशा में कार्य करेगा।
सहकारी समिति
- एक सहकारी समिति सामान्य आवश्यकताओं वाले व्यक्तियों का एक स्वैच्छिक संघ है, जो साझे आर्थिक हितों को प्राप्त करने के लिए एकजुट होते हैं।
- विभिन्न प्रकार की सहकारी समितियां उपभोक्ता सहकारी समितियां, सहकारी विपणन समितियाँ, सहकारी ऋण समितियाँ आदि हैं।
सहकारिता का महत्व
- लोकतांत्रिक तरीके से संचालन तथा सामाजिक और आर्थिक न्यायप्राप्त करने में सहायता करती है।
- उन स्थानों पर कृषि ऋण प्रदान करना, जहाँ राज्य और निजी क्षेत्रअक्षम सिद्ध होते हैं।
- शीत भंडार अवसंरचना तथा ग्रामीण सड़कों सहित भंडारण गोदामों जैसी बुनियादी अवसंरचना के निर्माण में मदद करती है।
संविधान में किए गए प्रावधान निम्नलिखित हैं :
- 97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 ने सहकारी समितियों कोसंवैधानिक दर्जा प्रदान किया है एवं इस संबंध में संविधान में भाग IXA (नगरपालिका) के ठीक बाद एक नया भाग IXB जोड़ा गया है।
- संविधान के भाग-III के अंतर्गत अनुच्छेद 19(1)(ग) में “यूनियन (Union) और एसोसिएशन (Association)” के बाद “सहकारिता” (Cooperative) शब्द जोड़ा गया था, जिसके तहत सहकारी समितियों के गठन के अधिकार को मूलअधिकार बनाया गया है।
- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (Directive Principles of State Policy-भाग IV) में “सहकारी समितियों के प्रचार” हेतु अनुच्छेद 43(ब)जोड़ा गया, इसके तहत “राज्य,सहकारी सोसाइटियों की स्वैच्छिक विरचना, उनके स्वशासी कार्यकरण, लोकतांत्रिक नियंत्रण और वृत्तिक प्रबंधन का संवर्धन करने का प्रयास करेगा।
स्रोत – द हिन्दू