सर्वोच्च न्यायालय ने सहकारी समितियों से संबंधित 97वें संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों को किया रद्द
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने 2:1 के बहुमत वाले निर्णय में 97वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा है। परन्तु न्यायालय ने इसके द्वारा समाविष्ट किए गए एक खंड को ख़ारिज कर दिया है, जो सहकारी समितियों के गठन व उनकी कार्य प्रणालियों से संबंधित है।
- ज्ञातव्य है कि यह संशोधन सहकारी समितियों के प्रभावी प्रबंधन से संबद्ध मुद्दों से संबंधित है। साथ ही न्यायालय ने सहकारी समितियों से संबंधित संविधान के भाग 9ख को अमान्य घोषित कर दिया है।
- भारत के संविधान का भाग 9ख केवल तब तक प्रभावी है, जब तक कि यह भारत के विभिन्न राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में बहु-राज्य सहकारी समितियों से संबंधित है।
- उच्चतम न्यायालय ने प्रेक्षण किया कि वें संविधान संशोधन के लिए संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार कम से कम आधे राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता है, क्योंकि यह उस प्रविष्टि से संबंधित है जो एक राज्य सूची के विषय से संबद्ध है ।
- अनुच्छेद 368 में संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति का उल्लेख है।
- सातवीं अनुसूची की सूची 2 में प्रविष्टि 32 के अनुसार सहकारी समितियां राज्य सूची का विषय हैं। इस संबंध में, पीठ ने उल्लेख किया कि 73वें और 74वें संशोधनों (जिनमें क्रमशः पंचायतों और नगर निगमों से संबंधित प्रावधान सम्मिलित हैं) को राज्यों के अनुसमर्थन हेतु उन्हें प्रेषित किया गया था।
97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 द्वारा किये गये प्रावधान
- सहकारी समितियों के गठन के अधिकार को मूल अधिकार बनाने के लिए अनुच्छेद 19(1)(ग ) का समावेश किया गया।
- संविधान के भाग-4 (राज्य की नीति के निदेशक तत्व) में अनुच्छेद 43 ख को समाविष्ट किया गया । राज्य सहकारी समितियों की स्वैच्छिक विरचना, उनके स्वशासी कार्यकरण,लोकतांत्रिक नियंत्रण और वृत्तिक प्रबंधन का संवर्धन करने का प्रयास करेगा ।
स्रोत – द हिन्दू