समान नागरिक संहिता

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समान नागरिक संहिता

केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष स्पष्ट किया है कि समान नागरिक संहिता लोक नीति का विषय है, इस कारण इसके संबंध में संसद को कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है ।

  • केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code: UCC) के कार्यान्वयन का मामला वर्तमान में भारत के विधि आयोग के पास लंबित है।
  • UCC एक एकल कानून को संदर्भित करता है। यह सभी नागरिकों के व्यक्तिगत मामलों जैसे- विवाह, तलाक, रखवाली, दत्तक ग्रहण और उत्तराधिकार पर लागू होता है।
  • इसका उद्देश्य अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों की व्यवस्था को समाप्त करना है। ये कानून वर्तमान में विभिन्न धार्मिक समुदायों के भीतर पारस्परिक संबंधों और संबंधित मामलों को नियंत्रित करते हैं।

UCC के पक्ष में तर्क

  • संविधान के अनुच्छेद- 44 में उपबंध किया गया है कि, राज्य ‘समान नागरिक संहिता’ को लागू करने का प्रयासकरेगा।
  • न्यायिक निर्णयों को लागू करने में सहायक है (मोहम्मदअहमद खान बनाम शाह बानो बेगम मामला (1985) और सरलामुद्गल बनाम भारत संघ मामला, (1995) ।
  • संहिता राष्ट्रीय एकीकरण को संभव बनाती है, क्योंकि विभिन्न धार्मिक समूहों के लिए अलग-अलग कानून सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं।
  • संहिता लैंगिक न्याय सुनिश्चित करती है, क्योंकिअधिकांश धार्मिक या प्रथागत व्यक्तिगत कानून पुरुषों के पक्षमें हैं तथा महिलाओं के प्रति पक्षपाती हैं।

UCC के विपक्ष में तर्क

  • संसद के पास ‘व्यक्तिगत कानूनों’ (समवर्ती सूची उल्लिखित) पर विशेष अधिकारिता नहीं है। अनुच्छेद 25 (व्यक्तिगत धर्म का मूल अधिकार), औरअनुच्छेद 26(b) (अपने धर्म संबंधी कार्यों का प्रबंध करनेका अधिकार) के विपरीत है।
  • देश की विविधता के विरुद्ध है।

स्रोत –द हिन्दू

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