समान नागरिक संहिता (UCC) पर सार्वजनिक एवं धार्मिक संगठनों की राय
22वां विधि आयोग समान नागरिक संहिता (UCC) पर सार्वजनिक एवं धार्मिक संगठनों की राय जानना चाहता है।
22वां विधि आयोग UCC के महत्त्व और अनेक अदालती फैसलों के आलोक में UCC का व्यापक पुनर्मूल्यांकन करेगा। इससे इस विषय की पूरी तरह से जांच सुनिश्चित हो पाएगी।
इससे पहले 2016 में कानून और न्याय मंत्रालय ने UCC के कार्यान्वयन से संबंधित सभी मामलों की जांच करने के लिए विधि आयोग को निर्देश दिया था। इस निर्देश के संदर्भ में, विधि आयोग ने 2018 में रिफॉर्म ऑफ़ फैमिली लॉ पर एक परामर्श-पत्र प्रस्तुत किया था ।
परामर्श–पत्र में कहा गया है:
- UCC “इस स्तर पर न तो आवश्यक है, और न ही वांछनीय है”।
- इसने सुझाव दिया कि मौजूदा पारिवारिक कानूनों में संशोधन और उनका संहिताकरण किया जाना चाहिए।
- इससे वैयक्तिक कानूनों (personal laws) में मौजूद भेदभाव और असमानता से निपटा जा सकेगा ।
- समान नागरिक संहिता (UCC) एक ऐसे एकल कानून को कहते हैं, जो सभी नागरिकों पर उनके व्यक्तिगत मामलों (जैसे – विवाह, तलाक, गोद लेने और विरासत) पर लागू होता है।
- इसका उद्देश्य देश में मौजूद अलग-अलग वैयक्तिक कानूनों की व्यवस्था को बदलना है । ये कानून वर्तमान में अलग-अलग धार्मिक समुदायों के भीतर पारस्परिक संबंधों और संबंधित मामलों को शासित करते हैं ।
- यह संविधान के अनुच्छेद-44 ( राज्य की नीति के निदेशक तत्व) के तहत आता है । इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा।
स्रोत – द हिन्दू