समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता का मामला
हाल ही में केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है।
सुप्रीम कोर्ट में अपने जवाबी हलफनामे में, केंद्र सरकार ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को गैर-आपराधिक ठहराने के निर्णय से समलैंगिक विवाह के लिए मान्यता प्राप्त करने के दावे को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
यह दावा विशेष विवाह अधिनियम (SMA ), 1954 के तहत किया जा रहा है।
वर्ष 2018 में, नवतेज सिंह जौहर मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को उस सीमा तक असंवैधानिक करार दिया था, जिस सीमा तक यह समान लिंग के वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए लैंगिक संबंधों को अपराध घोषित करती थी ।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि LGBTQ + व्यक्तियों को भी अन्य नागरिकों के समान संविधान द्वारा गारंटीकृत समानता, गरिमा और निजता के अधिकार प्राप्त हैं।
हालांकि, भारत में वैवाहिक मामलों को शासित करने वाली कानूनी व्यवस्था वर्तमान में LGBTQ+ समुदाय के सदस्यों को अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने की अनुमति नहीं देती है।
उपर्युक्त व्यवस्था को अनुच्छेद 14, 15, 19 (1) (a ) के अंतर्गत प्राप्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है ।
अन्य संबंधित न्यायिक निर्णय
वर्ष 2017 में न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारतीय संघ मामले में, यह निर्णय दिया गया था कि अनुच्छेद 21 के मूल अधिकार में निजता का अधिकार भी शामिल है ।
वर्ष 2018 में, शफीन जहां बनाम अशोकन के. एम. मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि वैवाहिक साथी चुनने का अधिकार निजता के अधिकार का हिस्सा होगा।
वर्ष 2022 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘विवाह की स्वतंत्रता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के मौलिक अधिकार के एक भाग के रूप में मान्यता दी थी ।
विशेष विवाह अधिनियम (SMA ),1954
विशेष विवाह अधिनियम (SMA ),1954 ऐसे युगल को सिविल विवाह (कानूनी देखरेख में विवाह) के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है, जो अपने पर्सनल लॉ के तहत शादी नहीं कर सकते हैं।
यह दो अलग-अलग धार्मिक समुदाय के लोगों को वैवाहिक बंधन में बंधने की अनुमति देता है।
यह ऐसे विवाह के विधिपूर्वक संपन्न होने और पंजीकरण, दोनों के लिए प्रक्रिया निर्धारित करता है, जहां पति या पत्नी या दोनों हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं हैं।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस