सऊदी अरब में तब्लीगी जमात प्रतिबंधित
हाल ही में, सऊदी अरब ने इस इस्लामिक मिशनरी संगठन ‘तब्लीगी जमात’ को अपने देश में प्रतिबंधित कर दिया गया, जिससे यह एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गया। इससे पहले यह दिल्ली में कोरोना काल में भी चर्चा में रहा था ।
- वस्तुतः ‘तब्लीगी जमात’ का तात्पर्य, धर्म का प्रसार करने वाला समाज से है। यह एक सुन्नी इस्लाम धर्म-प्रचारक आंदोलन है जो कि एक रूढ़िवादी मुस्लिम संगठन होता है।
- इसका उद्देश्य आम मुसलमानों तक पहुंचना और विशेष रूप से अनुष्ठान, पोशाक और व्यक्तिगत व्यवहार के मामलों में उनके विश्वास को पुनर्जीवित करना है।
- बांग्लादेश, पाकिस्तान, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर सहित विभिन्न देशों में इसका महत्वपूर्ण आधार है।
आंदोलन का आरंभ:
- ‘तब्लीगी जमात’ की शुरुआत, वर्ष 1926 में मेवात (हरियाणा) में प्रमुख इस्लामी विद्वान मौलाना मुहम्मद इलियास खंडलाव द्वारा की गयी थी। इसकी जड़ें, धर्मशास्त्र के हनफ़ी संप्रदाय के देवबंदी परम्परा में निहित हैं।
- मौलाना इलियाज ने देवबंद और सहारनपुर के कई युवकों को प्रशिक्षित कर मेवात भेज दिया, जहां तब्लीगी जमात द्वारा मदरसों और मस्जिदों का एक नेटवर्क स्थापित किया गया है।
तब्लीगी जमात, निम्नलिखित छह सिद्धांतों पर आधारित है:
- कलीमा : अर्थात एक धार्मिक लेख, जिसमें तब्लीग स्वीकार करता है कि अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं है और पैगंबर मुहम्मद उसके दूत हैं।
- सलात : से तात्पर्य रोज़ाना पाँच बार नमाज़पढने वाले से है ।
- इल्म और धिक्र: अल्लाह को याद करना और उसके बारे में ज्ञान सभाएं करना, यह इस प्रकार समुदाय और पहचान की भावना को बढ़ावा देता है।
- इकराम-ए-मुस्लिम : अर्थात साथी मुसलमानों के साथ सम्मान से पेश आना।
- इखलास-ए-नियत : या ईमानदार इरादे।
- दावत-ओ-तबलीग : या धर्मांतरण।
इसके कामकाज की आलोचना का कारण:
यद्यपि, इस संगठन का दायरा ‘मुस्लिम आस्था’ के प्रसार तक सीमित प्रतीत होता है, फिर भी इस समूह पर कई बार कट्टरपंथी संगठनों से संबंध रखने का आरोप लगाया जाता रहा है। कुछ पर्यवेक्षकों के अनुसार, कट्टरपंथी संगठन इसके खुले संगठनात्मकढांचे का लाभ उठा सकते हैं। इसके अलावा, यह संगठन अपनी गतिविधियों के दायरे, सदस्यता या अपने वित्त के स्रोत के बारे में कोई जानकारी प्रकाशित नहीं करते हैं। हालांकि, ऐसा माना जाता है कि ‘तब्लीगी जमात’ दान पर यकीन नहीं करता है, और काफी हद तक, संगठन के वरिष्ठ सदस्य इसका वित्तपोषण करते हैं।
स्रोत – द हिन्दू