संसद का मानसून सत्र

संसद का मानसून सत्र

हाल ही में, संसद का मानसून सत्र की शुरुआत हो चुकी है ज्ञातव्य हो कि, संसद के पिछले सत्र की अवधि को घटाकर अनिश्चितकाल के लिए समाप्त कर दिया गया था।

लेकिन संविधान के अनुसारअगला सत्र 6 महीने के भीतर आयोजित किया जाना आवश्यक होता है। अतः यह समय सीमा 14 सितंबर को समाप्त हो रही है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • संविधान के अनुच्छेद 85 के अनुसार, संसद के 2 सत्रों के मध्य ‘6 महीने से अधिक’ का अंतराल नहीं होना चाहिए।
  • लेकिन यहं ध्यान यह देना होगा कि, संविधान यह निर्दिष्ट नहीं करता है, कि संसद का सत्र कब या कितने दिनों के लिए होना चाहिए।
  • संसद के 2 सत्रों के मध्य अधिकतम अंतराल छह महीने से अधिक नहीं हो सकता है। अर्थात, एक वर्ष में कम से कम 2 बार संसद की बैठक होना अनिवार्य है।
  • संसद का ‘सत्र’, सदन की प्रथम बैठक और उसके सत्रावसान के मध्य की अवधि होती है।

‘सत्र’ किसके द्वारा आहूत किया जाता है?

सैद्धांतिक रूप से , राष्ट्रपति समय-समय परसंसद‌ के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर,जैसा वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा। लेकिन, व्यवहारिक तौर पर, संसद की बैठक की तारीखों के संबंध में ‘संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति,(जिसमें वरिष्ठ मंत्री सम्मिलित होते हैं)निर्णय लेती है और फिर इसे राष्ट्रपति को अवगत कराया जाता है। अतःप्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कार्यपालिका के पास, राष्ट्रपति को संसद सत्र आहूत करने की सलाह देने की शक्ति होती है।

संसदीय सत्र का महत्व:

विधि-निर्माण अर्थात क़ानूननिर्माण से सम्बंधित कार्य संसदीय सत्र के दौरान किए जाते है। इसके अतरिक्त, सरकार के कामकाज की गहन जांच और राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श केवल संसद के दोनों सदनों में जारी सत्र के दौरान ही किया जा सकता है।एक अच्छी तरह से काम कर रहे लोकतंत्र के लिए संसदीय कार्य-पद्धति का पूर्वानुमान होना आवश्यक होता है।

स्रोत – पी आई बी

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