संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (UNOC) संपन्न
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (UNOC), महासागर की गंभीर स्थिति से निपटने के लिए ‘व्यापक महत्वाकांक्षा और वैश्विक प्रतिबद्धता के आह्वान के साथ समाप्त हुआ है।
दूसरा संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन ‘लिस्बन घोषणा’ के साथ समाप्त हुआ। यह एक राजनीतिक घोषणा है। इसका शीर्षक है- ‘आवर ओशन, आवर फ्यूचरः कॉल फॉर एक्शन’।
इसे केन्या और पुर्तगाल की सह-मेजबानी में लिस्बन में आयोजित किया गया था।
पहला संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन वर्ष 2017 में न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित किया गया था। इसकी मेजबानी फिजी और स्वीडन ने की थी।
इसके एक भाग के रूप में, विश्व के 150 से अधिक देशों ने महासागरीय आपात को दूर करने के लिए विज्ञान आधारित और नवोन्मेष कार्रवाइयों को आगे बढ़ाने हेतु सामूहिक रूप से सहमति व्यक्त की है।
यह सहमति सतत विकास लक्ष्य-14 (जल के नीचे जीवन) के कार्यान्वयन का समर्थन करती है।यह सतत विकास के लिए महासागर विज्ञान का संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030) के अनुरूप है।
मुख्य निष्कर्ष
- पेरिस समझौते (2015) और ग्लासगो जलवायु समझौते को लागू करने के विशेष महत्व पर बल दिया गया। यह महासागर की बेहतरी, उत्पादकता, संधारणीय उपयोग और सहन क्षमता को सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
- भाग लेने वाले देशों ने वर्ष 2030 तक समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के भीतर वैश्विक महासागर के कम से कम 30% भाग के संरक्षण या सुरक्षा और अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपायों के लिए स्वैच्छिक प्रतिबद्धताएं व्यक्त किया हैं।
- भारत ने तटीय स्वच्छ समुद्र अभियान के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की। साथ ही, एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में कार्य करने की भी घोषणा की है।
- यूनेस्को ने इस सम्मेलन के दौरान अपनी प्रमुख रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ द ओशन’ (प्रायोगिक संस्करण) जारी किया।
इसकी मुख्य सिफारिशें निम्नलिखित हैं:
- महासागर विज्ञान और नीति के बीच के संबंधों को मजबूत बनाना चाहिए।
- राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर और इसके परे संधारणीय महासागर योजना निर्माण तथा प्रबंधन के लिए सैद्धांतिक आधार बनाने की दिशा में कार्य करने चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में प्रमुख प्रतिबद्धताएं–
- वर्ष 2030 तक राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्रों के 30% या उससे अधिक की रक्षा करना।
- प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना और अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाना।
- वर्ष 2040 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करना।
- समुद्र के अम्लीकरण, जलवायु लचीलापन परियोजनाओं और निगरानी, नियंत्रण एवं चौकसी पर अनुसंधान के लिए धन आवंटित
स्रोत– द हिन्दू