संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा ‘अडॉप्टेशन गैप रिपोर्ट 2020

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा “अडॉप्टेशन गैप रिपोर्ट 2020 द गैदरिंगस्टार्म जारी की गई है।

यह रिपोर्ट अनुकूलन पर राष्ट्रीय और वैश्विक प्रगति का आकलन करती है। साथ ही, अनुकूलन प्रक्रिया के 3 केंद्रीय तत्वों यथा योजना निर्माण, वित्तपोषण और कार्यान्वयन को शामिल करती है, जो निम्नलिखित है।

अनुकूलन देशों और समुदायों की जलवायु परिवर्तन के प्रति समेघता को कम करने की प्रक्रिया है। इसके तहत आघातों को अवशोषित करने और स्थिति-स्थापक बने रहने की उनकी क्षमता बढ़ जाती है।

अनुकूलन अंतराल (Adaptation Gap) को वास्तव में कार्यान्वित अनुकूलन एवं सामाजिक स्तरपर एक निर्धारित लक्ष्य के मध्य अंतर के रूप में परिभाषित किया गया है।

यह लक्ष्य व्यापक पैमाने पर सहनशील जलवायु परिवर्तन प्रभावों से संबंधित वरीयताओं द्वारा निर्धारित किया जाता है तथा यह संसाधन सीमाओं और प्रतिस्पर्धी प्राथमिकताओं को दर्शाता है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को नीति और योजना निर्माण में शीघ्रता से सम्मिलित किया जा रहा है। लगभग 79% देशों ने कम से कम एक राष्ट्रीय स्तर के अनुकूलन योजना विकल्प (वर्ष 2020 से 7% की वृद्धि) को अपनाया है।
  • विकासशील देशों में अनुकूलन लागत और वित्तपोषण की आवश्यकताएं मौजूदा वित्त प्रवाह की तुलनामें 5 से 10 गुना अधिक हैं।
  • अनुकूलन वित्त अंतराल वर्ष 2020 में निर्दिष्ट अंतराल से व्यापक और विस्तृत हो रहा है। हरित और स्थिति-स्थापक रिकवरी के लिए कोविड-19 रिकवरी प्रोत्साहन पैकेज द्वारा प्रदान किए गए अवसरों का वर्तमान में लाभ नहीं उठाया जा रहा है।

अनुशंसाएं

  • विश्व को प्रत्यक्ष निवेश के माध्यम से सार्वजनिक अनुकूलन वित्तपोषण को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा हरित और लोचशील कोविड-19 रिकवरी प्रयासों के लिए राजकोषीय आय विकल्प उपलब्ध करवाने में विकासशील देशों की सहायता करनी चाहिए ।

फर्स्ट मूवर्स कोएलिशन (FMC)

  • यह अमेरिका और 30 से अधिक वैश्विक व्यवसायों के साथ साझेदारी में विश्व आर्थिक मंच द्वारा शुरू की गई एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी है।
  • यह नवोन्मेषी हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के लिए कार्बन-सघन क्षेत्रों में आपूर्ति श्रृंखलाओं के साथ वैश्विक कंपनियों को एकजुट करता है, ताकि वे वर्ष 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वर्ष 2030 तक व्यापक पैमाने पर उपलब्ध हों।

स्रोत – द हिन्दू

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