संयुक्त अरब अमीरात और ओपेक प्लस (OPEC+) के मध्य गतिरोध
हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात और ओपेक प्लस (OPEC+) के मध्य गतिरोध होने की घटना सामने आई है ।
संयुक्त अरब अमीरात और OPEC+ के मध्य गतिरोध का भारतीय प्रभाव
- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन प्लस (ओपेक+) समूह के मध्य अप्रैल 2022 से आगे तेल उत्पादन में कटौती के लिए वैश्विक समझौते का विस्तार करने पर हालिया वार्ता आम सहमति तक नहीं पहुंच सकी है।
- कोविङ-19 महामारी के कारण वर्ष 2020 में तेल की कीमतों में गिरावट कीपृष्ठभूमि में, अप्रैल 2020 में ओपेक प्लस समूह ने बेहतर कीमत प्राप्त करने के लिए कच्चे तेल के उत्पादन में अत्यधिक कटौती हेतु दो वर्ष के एकआउटपुट पैक्ट पर हस्ताक्षर किए थे।
- नवंबर 2020 में विश्वभर में, टीकाकरण कार्यक्रमों के निरंतर आरंभ और आर्थिक गतिविधियों में तेजी के कारण तेल की कीमतों में पूर्व-कोविड स्तरों तक वृद्धि हुई थी। हालांकि, ओपेक प्लस समूह ने उत्पादन के निम्न स्तर को बनाए रखा और भारत सहित विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तीखी आलोचना के उपरान्त हीओपेक प्लस देश कच्चे तेल के उत्पादन को धीरे-धीरे बढ़ाने पर सहमत हुए।
भारत पर प्रभाव
- भारत के तेल आयात में ओपेक प्लस की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत से अधिक है। भारत वर्तमान में पेट्रोल और डीजल की रिकॉर्ड-उच्च कीमतों का सामना कर रहा है। इस प्रकार यदि गतिरोध का समाधान नहीं किया गया तो अपेक्षित राहत में विलंब हो सकता है।
- यह महामारी के पश्चात विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के आर्थिक सुधार को धीमा कर देगा। ऊंची कीमतों से चालू खाता घाटा भी बढ़ सकता है, और अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति के दबाव में वृद्धि हो सकती है।
ओपेक और ओपेक प्लस के बारे में
- ओपेक एक स्थायी व अंतर सरकारी संगठन है। इसे वर्ष 1980 में बगदाद सम्मेलन के दौरान स्थापित किया गयाथा। इसका मुख्यालय वियना में स्थित है।
- गैर-ओपेक देश जो कच्चे तेल का निर्यात करते हैं, उन्हें ओपेक प्लस देश कहा जाता है। इनमें रूस, मैक्सिको, मलेशिया आदि देश शामिल हैं।
स्रोत – द हिन्दू