दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) में संशोधन

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) में संशोधन

हाल ही में रिकवरी को अधिकतम करने तथा इसमें तेजी लाने के लिए दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) में संशोधन किया गया है।

IBC में निम्नलिखित संशोधन किए गए हैं:

  • कर्जदाताओं को उन मामलों में अलग से परिसंपत्ति बेचने की अनुमति दी गई है, जहां समग्र रूप में कोई समाधान योजना प्राप्त नहीं हुई है।
  • समाधान पेशेवरों (RPs) के लिए प्रदर्शन-आधारित भुगतान संरचना की घोषणा की गयी है।
  • RPs, दिवाला प्रक्रियाओं से जुड़े पेशेवर हैं। इन्हें समाधान प्रक्रिया के संचालन के लिए नियुक्त किया जाता है।
  • किसी कंपनी की दिवाला प्रक्रिया के सफलतापूर्वक समाधान हो जाने पर RPs एक सफलता शुल्क (success fees) प्राप्त करते हैं। इस शुल्क की दर पूर्व निर्धारित नहीं होती है।

IBC वर्ष 2016 में लागू की गई थी। इसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं:

  • बैड लोन की समस्याओं से निपटना, और दिवाला व शोधन अक्षमता के मुद्दों के समाधान के लिए वन स्टॉप समाधान के रूप में कार्य करना।
  • इस कानून में कॉर्पोरेट से जुड़े व्यक्तियों, साझेदारी कंपनियों और व्यक्तिगत मामलों के पुनर्गठन एवं दिवाला समाधान से संबंधित कई कानूनों को समेकित व संशोधित किया गया है।

IBC का महत्व इस प्रकार है:

  • इन्सॉल्वेंसी के समाधान में लगने वाले समय और लागत में कमी आती है,
  • व्यवसाय करने में सुगमता को बढ़ावा मिलता है,
  • यह शीघ्र समाधान के लिए कर्जदारों के व्यवहार में बदलाव को बढ़ावा देती है आदि।

स्रोत द हिन्दू

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