‘शिमला समझौता’ शांति स्थापित करने में असफल रहा है
भारत और पाकिस्तान के बीच 02 जुलाई, 1972 को हस्ताक्षरित शिमला समझौते के 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं।
इसने भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे पड़ोसी संबंधों के लिए एक व्यापक रूपरेखा तैयार की थी। इस पर वर्ष 1971 के युद्ध के बाद शांति स्थापित करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे।
शिमला समझौते के प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं:
- दो राष्ट्रों के बीच संबंधों को नियंत्रित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों और उद्देश्यों को अपनाना।
- प्रत्यक्ष द्विपक्षीय तरीकों के माध्यम से सभी मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए पारस्परिक प्रतिबद्धता।
- दोनों देशों के लोगों के मध्य संपर्कों पर विशेष ध्यान देने के साथ सहयोगात्मक संबंध निर्मित करना।
- जम्मू और कश्मीर में नियंत्रण रेखा का उल्लंघन नहीं करना। यह भारत और पाकिस्तान के बीच सबसे महत्वपूर्ण विश्वास निर्माण उपाय है। साथ ही, स्थायी शांति की कुंजी भी है।
- एक दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखंडता,राजनीतिक स्वतंत्रता और संप्रभु समानता का सम्मान करना।
एक ओर भारत ने शिमला समझौते के सिद्धांतों का ईमानदारी से पालन किया है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान अपने शुरुआती वादों पर खरा नहीं उतरा है। यह अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर के मुद्दे को उठाता रहता है। साथ ही, इसका समाधान खोजने के लिए तीसरे पक्ष को शामिल करने की मांग करता रहता है।
शिमला समझौते के अतिरिक्त, लाहौर घोषणा (1999) ने भी इस बात को दोहराया है कि कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय रूप से हल करने की आवश्यकता है।
स्रोत –द हिन्दू