संकटग्रस्त शहरी सहकारी बैंकों (UCBs) में सुधारों का संकेत : RBI

संकटग्रस्त शहरी सहकारी बैंकों में सुधार

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर ने संकटग्रस्त शहरी सहकारी बैंकों (UCBs) में सुधारों का संकेत दिया है।

गवर्नर ने संकेत दिया है कि RBI उन शहरी सहकारी बैंकों में सुधार के लिए विनियामक परिवर्तन लागू करेगा, जो बारंबार विफलताओं से ग्रस्त हैं।

यह ब्यान इस आलोक में माना जा रहा है, जहां बंद किए जा चुके तीन UCBs के कई जमाकर्ताओं को निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (DICGC) की योजना के तहत 5 लाख रुपये तक जमा बीमा का भुगतान किया गया था।

UCBs के बारे में

  • UCB शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थित प्राथमिक सहकारी बैंकों को संदर्भित करता है।
  • वे संबंधित राज्य के राज्य सहकारी समिति अधिनियम या बहुराज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के तहत सहकारी समितियों के रूप में पंजीकृत हैं।
  • UCBs अनुसूचित या गैर अनुसूचित दोनों होते हैं।

UCBs का महत्वः

मितव्ययिता और स्वयं सहायता को बढ़ावा देना, वित्तीय समावेशन, आकर्षक ब्याज दरें, स्थानीय प्रकृति, अपने वाणिज्यिक प्रतिस्पर्धियों पर लाभ आदि।

UCBs से संबंधित मुद्दे:

  • UCBs में प्रबंधन संबंधी मुद्दे विद्यमान हैं, क्योंकि कभी-कभी निहित राजनीतिक हितों से इनकी कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
  • ये अधिकांश एकल-शाखा बैंक हैं और उनमें सहसंबद्ध परिसंपत्ति जोखिम की समस्या बनी रहती है (यदि व्यापक स्तर की स्थानीय समस्या है, तो पूरा बैंक बंद हो सकता है)।
  • व्यावसायिकता की कमी जैसे, लागत कम रखने के लिए स्थानीय लोगों को कार्य पर रखना आदि।
  • गैर-निष्पादित आस्ति (NPA) और लाभप्रदता का मुद्दा (पंजाब तथा महाराष्ट्र सहकारी बैंक संकट)।

स्रोत – द हिन्दू

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