वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट 2023 के नेताओं के प्रथम अधिवेशन आयोजित
हाल ही में ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’ के नेताओं के प्रथम अधिवेशन ( 2023 ) का आयोजन किया गया है।
- यह शिखर सम्मेलन बढ़ती वैश्विक अस्थिरता और अनिश्चितता के बीच भारत की पहल पर शुरू किया गया है। इसका नेतृत्व भारत द्वारा किया गया है।
- ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’के समापन पर भारत के प्रधानमंत्री ने दभी को संबोधित किया है ।
सम्मलेन के मुख्य बिंदु
- इस सम्मेलन के माध्यम से विकासशील देश अपनी चिंताओं, परिप्रेक्ष्यों तथा प्राथमिकताओं को साझा कर सकते हैं ।
- इनमें कोविड – 19 महामारी के प्रभाव, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, अनिश्चित आपूर्ति श्रृंखला, विश्व के कुछ भागों में चल रहे संघर्ष तथा ऋण संकट कुछ प्रमुख चिंताएं हैं।
- ग्लोबल साउथ शब्दावली का प्रयोग मुख्यतः एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों के लिए किया जाता है।
- इन देशों की कुछ साझी विशेषताएं हैं जैसे- औपनिवेशिक इतिहास, वैश्विक बहुपक्षीय संस्थानों की शासी संरचना भूमिका का अभाव आदि ।
- वैश्विक राजनीतिक और वित्तीय गवर्नेस को नया स्वरूप देने से इन देशों को अपने यहां असमानताओं को दूर करने, अवसरों को बढ़ाने, संवृद्धि का समर्थन करने तथा प्रगति व समृद्धि का विस्तार करने में मदद मिल सकती है।
अधिवेशन के दौरान भारत ने निम्नलिखित पक्षों को प्रस्तुत किया:
‘विश्व को फिर से ऊर्जावान बनाने के लिए एक वैश्विक एजेंडे’ की आवश्यकता है ।
वैश्वीकरण का एक ‘ग्लोबल साउथ सेंसिटिव’ मॉडल तैयार करने की जरूरत है।
इसके लिए निम्नलिखित तीन मूलभूत परिवर्तन करने होंगे:
- वैश्वीकरण के स्तर पर: आत्म- केंद्रित वैश्वीकरण से मानव – केंद्रित वैश्वीकरण की ओर बढ़ना होगा ।
- नवाचार और प्रौद्योगिकी के स्तर पर: सामाजिक परिवर्तन के लिए संरक्षण प्राप्त प्रौद्योगिकियों के अंतिम प्राप्तकर्ता होने की बजाय ग्लोबल साउथ के नेतृत्व में विकसित नवाचारों के उपयोग को बढ़ावा देना होगा।
- विकास सहयोग: ऋण की आवश्यकता वाली परियोजनाओं की बजाय मांग- आधारित और संधारणीय विकास सहयोग आधारित परियोजनाओं को अपनाना होगा ।
विश्व को फिर से ऊर्जावान बनाने के लिए वैश्विक एजेंडा:
- एक समावेशी और संतुलित अंतर्राष्ट्रीय एजेंडा तैयार करके ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं के प्रति अनुक्रिया करना ।
- इस तथ्य को स्वीकार करना कि सभी वैश्विक चुनौतियों पर ‘साझा किंतु विभेदित जिम्मेदारियों’ का सिद्धांत लागू होता है।
- सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान करना, कानून का शासन सुनिश्चित करना और मतभेदों व विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करना ।
- संयुक्त राष्ट्र सहित सभी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को और अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए उनमें सुधार करना ।
भारत एवं ग्लोबल साउथ
- भारत द्वारा G20 की अध्यक्षता प्राप्त करने के साथ ही, भारत के विदेश मंत्री ने “वैश्विक दक्षिणी देशों की आवाज़” के रूप में भारत की भूमिका पर बल दिया, जिसका वैश्विक मंचों पर प्रतिनिधित्त्व कम है।
ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ:
- ‘ग्लोबल नॉर्थ’ से तात्पर्य मोटे तौर पर अमेरिका, कनाडा, यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों है, जबकि ‘ग्लोबल साउथ’ के अंतर्गत एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देश शामिल हैं।
- ग्लोबल साउथ भौगोलिक क्षेत्र का सूचक नहीं है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया दक्षिणी गोलार्ध में होने के बाद भी ग्लोबल साउथ देशों में शामिल नहीं है।
- यह वर्गीकरण अधिक सटीक है क्योंकि इन देशों में , शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के संकेतक आदि के संदर्भ में काफी समानताएँ हैं।
क्या है ग्लोबल साउथ?
सबसे पहले 1969 में प्रगतिशील सामाजिक कार्यकर्ता कार्ल ओल्स्बी द्वारा गढ़ा गया, ग्लोबल साउथ टर्म वस्तुतः विकासशील देशों, कम विकसित देशों, अविकसित देशों, कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं, या तथाकथित थर्ड वर्ल्ड देश जैसे शब्दों का पर्याय है।
स्रोत – पी.आई.बी.