सरकारी प्रतिभूतियां (G-Secs) शीघ्र ही वैश्विक बॉण्ड सूचकांक में शामिल होंगी
वैश्विक बॉण्ड सूचकांक में विश्व भर के निवेश-श्रेणी के और सरकारी बॉण्ड को शामिल होते हैं। इनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष से अधिक की होती है।
- इस कदम से ऋण बाजार में विदेशी प्रवाह आकर्षित होने की अपेक्षा है और इससे सरकारको अपने बाजार उधार कार्यक्रम में सहायता मिलेगी।
- केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा जारी किया जाने वाला एक व्यापार योग्य लिखत (tradable instrument) है। यह सरकार के ऋण दायित्व से जुड़ा होता है।
- सरकारी प्रतिभूतियां या तो अल्पावधिक या दीर्घावधिक होती हैं। अल्पावधिक प्रतिभूतियां आमतौर पर एक वर्ष से कम की परिपक्वता अवधि की होती हैं, और इन्हें ट्रेजरी बिल कहा जाता है। दीर्घावधिक प्रतिभूतियां आमतौर पर एक वर्ष या उससे अधिक की परिपक्वता अवधि की होती हैं, और इन्हें सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियां कहा जाता है।
- केंद्र सरकार ट्रेजरी बिल और बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियां दोनों जारी करती है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियां जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण भी कहा जाता है।
- सरकारी प्रतिभूतियों में व्यावहारिक रूप से चूक का कोई जोखिम नहीं होता है और इसलिए, इन्हें जोखिम मुक्त गिल्ट-एज लिखत कहा जाता है।
वैश्विक बॉण्ड सूचकांक में शामिल होने के लाभः
- यह सरकारी बॉण्ड खरीदने के लिए वाणिज्यिक बैंकों पर से दबाव को कम करेगा।
- विदेशी निवेशकों की अधिक भागीदारी से भारतीय बॉण्डबाजारों के लिए सकारात्मक माहौल के निर्माण में मदद मिलेगी।
- बॉण्ड में विदेशी प्रवाह भारतीय रुपये को मजबूती और स्थिरता प्रदान करेगा।
- इससे पूंजी की लागत कम होगी और ब्याज दरों में कमी आएगी, जिसके परिणामस्वरूप ऋण की स्थिरता बनी रहेगी।
स्रोत – द हिन्दू