वैश्विक तापन एवं वर्षा रिपोर्ट
वैश्विक तापन एवं वर्षा रिपोर्ट
हाल ही में वैज्ञानिकों ने पाया कि वैश्विक तापन से आर्कटिक हिम की कमी से मानसून के अंत में अत्यधिक वर्षा होती है ।
शोध में पाया गया है कि मध्य भारत में चरम वर्षा की घटनाओं (दैनिक वर्षा >150 मिमी) की आवृत्ति बीसवीं शताब्दी की शुरुआत (1920-1940) की अवधि में तापन और हाल ही में 1980 के दशक के पश्चात से तापन के दौरान गर्मियों में समुद्री हिम की मात्रा में गिरावट (विशेष रूप से आर्कटिक में हिम में गिरावट) के साथ बढ़ रही है।
मुख्य बिंदु
- इस शोध का नेतृत्व राष्ट्रीय धुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केन्द्र (पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत) द्वारा किया गया है।
- विगत 30 वर्षों में, आर्कटिक संपूर्ण विश्व की तुलना में दोगुनी दर से गर्म हुआ है। इस घटना को आर्कटिक प्रवर्धन (ArcticAmplification) के रूप में जाना जाता है।
- यह पाया गया है कि आर्कटिक के समुद्री हिम की क्षति और अरब सागर पर अत्यधिक गर्म समुद्री सतह तापमान के कारण ऊपरी स्तर के वायुमंडलीय परिसंचरण में होने वाला परिवर्तन मानसून वर्षा में अत्यधिक वृद्धि में योगदान करता है।
- एक अन्य संबंधित सुर्खियों में, अंटार्कटिका की एक विशाल झील के नीचे हिम की चट्टान के ढहने के उपरांत वर्ष 2019 में केवल तीन दिनों के भीतर ही वह झील विलुप्त हो गई थी।
- इस गहरी झील में संचित जल के भार से अमेरी हिम चट्टान में एक दरार उत्पन्न हुई, एक प्रक्रिया जिसे हाइड्रो-फ्रेक्चर के रूप में जाना जाता है, उसके कारण झील में संचित जल समुद्र में प्रवाहित हो गया।
स्त्रोत: द हिन्दू
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