वैवाहिक बलात्कार, तलाक के लिए एक वैध आधार
हाल ही में, केरल उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार वैवाहिक बलात्कार, तलाक के लिए एक वैध आधार है ।
- केरल उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि वैवाहिक बलात्कार तलाक के लिए एक वैध आधार है। हालांकि, भारत में वैवाहिक बलात्कार के लिए दंड का प्रावधान नहीं है।
- विवाह में पति या पत्नी के पास पीड़ित नहीं होने का एक विकल्प होता है। यह नैसर्गिक कानून और संविधान के तहत गारंटीकृत स्वायत्तता के लिए मौलिक है।
- न्यायालय द्वारा तलाक को अस्वीकार करके, कानून पति या पत्नी को उसकी इच्छा के विरुद्ध पीड़ित होने के लिए विवश नहीं कर सकता है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 (अपवाद) के अनुसार, किसी पुरुष का अपनी स्वयं की पत्नी के साथ मैथुन या लैंगिक कृत्य, यदि पत्नी पंद्रह वर्ष से कम आयु की न हो, तो वह बलात्संग नहीं है । इस प्रकार यह धारा ऐसे कृत्यों को अभियोजन से प्रतिरक्षित करती है। भारत उन 36 देशों में से है, जहां वैवाहिक बलात्कार विधिक अपराध नहीं है।
- महिलाओं के प्रति भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर कन्वेंशन ने वर्ष 2013 में अनुशंसा की थी कि भारत सरकार को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करनाचाहिए।
- वर्ष 2012 के सामूहिक बलात्कार मामले के उपरांत देशव्यापी विरोध के मध्य गठित जे.एस.वर्मा समिति ने भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की अनुशंसा की थी।
महिलाओं के लिए उपलब्ध विधिक प्रावधान
- धारा 498A महिलाओं के साथ उनके पति या उनके पति के किसीरिश्तेदार द्वारा किए गए क्रूरतापूर्ण व्यवहार से संबंधित है।
- भारतीय कानून के तहत घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 बलपूर्वक लैंगिक संबंध बनाने के कृत्य को दंडनीय मानता है।
- हालांकि, कानूनी रूप से एक मजिस्ट्रेट को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार करने वाले किसी व्यक्ति के कृत्य को अपराध घोषित करने की पूर्ण शक्ति प्राप्त नहीं है और न ही उस व्यक्ति को दंड दिया जा सकता है।
स्रोत – द हिन्दू