वैक्सीन राष्ट्रवाद की धारणा हो समाप्त

वैक्सीन राष्ट्रवाद की धारणा हो समाप्त

ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क’ (AIPSN) ने हाल ही में कहा है कि ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ का विचार पूरी तरह से वैश्विक जगत के लिए गलत है, और इसे सभी को त्याग देना चाहिए।

सम्बंधित मामला

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा देश से होने वाली कोविड वैक्सीन के निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगा दिए  हैं,  जिससे विकासशील देशों तथानिम्न-आय वाले देशोंको टीकों की मुफ्त आपूर्ति सुनिश्चित कराने हेतु स्थापित अंतर्राष्ट्रीय COVAX कार्यक्रम मेंभारत की शाख गिरने की सम्भावना है ,जिसे भारत ने पिछले वषों में बहुत महत्वपूर्ण योगदान से अर्जित किया था।

क्या है वैक्सीन राष्ट्रवाद ?

  • वैक्सीन राष्ट्रवाद एक ऐसी कार्यनीति है जिसमें कोई देश किसी वैक्सीन की खुराक को अन्य देशों में उपलब्ध कराने से पहले अपने देश के निवासियों के लिए सुरक्षित कर लेना चाहता है।इस कार्य के लिए सरकार तथा वैक्सीन निर्माता के मध्य खरीद-से पहले ही  समझौता कर लिया जाता है।
  • विदित हो कि वैक्सीन राष्ट्रवाद की अवधारणा नई नहीं है। इसे वर्ष 2009 ,में फ़ैली H1N1फ्लू महामारी के प्रारम्भिक चरणों में विश्व के समृद्ध देशों द्वारा H1N1 वैक्सीन निर्माता कंपनियों से खरीद-पूर्व समझौते कर लिए गए थे।
  • हाल ही में ऐसा ही एक समझौता अमेरिका द्वारा किया गया अमेरिका नेवैक्सीन के लिए खरीद-पूर्व समझौते के तहत 600,000 खुराक खरीदने का अधिकार प्राप्त कर लिया है ।विदित हो की ऐसा समझौता करने वाले देशों में विकसित अर्थव्यवस्थायें अधिक भाग ले रही हैं।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि, सामान्य परिस्थितियों में, वैश्विक स्तर पर किसी भी वैक्सीन की अधिकतम दो बिलियन खुराकों का उत्पादन किया जा सकता है।

चुनौतयां:

  • यदि वैक्सीन राष्ट्रवाद की भावना बढती है तोकिसी बीमारी की वैक्सीन का सभी जरूरतमंद देशों में पहुँच पाना बाधित होगा जिससे बहुत गंभीर समस्या जन्म ले सकती है।
  • निम्न आय वाले,अविकसित तथा ऐसे देश जो अल्प संसाधनों तथा मोल-भाव की शक्ति नही रखते हैं मेंइसकी भयावहता अधिक होगी ।
  • यह विश्व के दक्षिणी भागों में स्थित आबादी को समय पर महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी वस्तुओं की पहुंच से वंचित करता है।

समाधान:

  • ज्ञात है कि इस वैक्सीन की सप्लाई के मुकाबले मांग अधिक रहने वाली है, ऐसे में यह दवा किसे मिलनी चाहिए, इसे लेकर चुनाव देशों को करना होता है और अक्सर सभी देश अपना हित पहले देखकर निर्णय लेते हैं।
  • वैश्विक मानव अधिकार आयोग के अनुसार इस वैक्सीन की ज़रूरत किसे है? सबसे अधिक जोखिम समूह कौन से हैं? और किसे प्राथमिकता में रखा जाना चाहिए? इन सभी प्रश्नों के आधार पर निर्णय लेने वाली एक वैश्विक संस्था का गठन किया जाना चाहिए।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित सभी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के दौरान दवा के समान वितरण हेतु कार्यनीति तैयार किये जाने की आवश्यकता है।
  • समानता के लिए, वैक्सीन की खरीदने की क्षमता तथा वैश्विक आबादी की वैक्सीन तक पहुच, दोनों अपरिहार्य होते है।

स्रोत – द हिन्दू

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