वुहान घोषणा
हाल ही में आर्द्रभूमियों पर रामसर कन्वेंशन के पक्षकारों के 14वें सम्मेलन (COP-14) के तहत ‘वुहान घोषणा’ को अपनाया गया है।
- रामसर कन्वेंशन एक अंतर-सरकारी संधि है। इस संधि को वर्ष 1971 में अपनाया गया था। यह संधि आर्द्रभूमियों के संरक्षण और उनके संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए रूपरेखा प्रदान करती है।
- आर्द्रभूमि को ऐसे किसी भी भू-क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो मौसमी या स्थायी रूप से जलमग्न रहता है। उदाहरण के लिए; झीलें, जलभृत और दलदली भूमि, मैंग्रोव, पीट भूमि, ज्वारनदमुख, प्रवाल भित्तियाँ आदि।
- वुहान घोषणा के अंतर्गत दुनियाभर की आर्द्रभूमियों के संरक्षण, पुनर्स्थापन, प्रबंधन और सतत उपयोग को बढ़ावा देने के लिए व्यावहारिक उपायों को अपनाने का आह्वान किया गया है।
वुहान घोषणा की प्रमुख प्राथमिकताओं पर एक नजरः
- वैश्विक स्तर पर आर्द्रभूमि के नकसान को रोकने और उसे उलटने के उपाय करना।
- घरेलू कानून, योजनाओं और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के कार्यान्वयन में योगदान देने के लिए आर्द्रभूमियों को राष्ट्रीय कार्यवाही में शामिल करना।
- नागरिक समाज के हितधारकों, अकादमिक और निजी क्षेत्रक के साथ साझेदारी स्थापित करके आर्द्रभूमियों के लिए रणनीतिक लक्ष्यों एवं प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को परिभाषित करना।
- जलवायु परिवर्तन प्रभावों के शमन, जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन और आपदा जोखिम में कमी के लिए प्रकृति आधारित समाधान के रूप में स्वस्थ आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र के महत्व को रेखांकित करना।
इसके अलावा, COP-14 में एक अन्य रिपोर्ट भी प्रस्तुत की गई। इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि रामसर स्थलों की सूची में शामिल 75% आर्द्रभूमियों के संबंध में जो जानकारी है, वह पुरानी हो चुकी है। रामसर कन्वेंशन के पक्षकारों को प्रत्येक छह वर्षों में कम से कम एक बार अपने रामसर स्थलों के संबंध में जानकारी अपडेट करने की आवश्यकता होती है।
स्रोत – द हिन्दू