राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA)द्वारा मनाया गया ‘विश्व बाघ दिवस’
हाल ही में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने स्पष्ट किया है कि टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्रों में किसी नए निर्माण की अनुमति नहीं होगी।
यह निर्णय 29 जुलाई, 2022 को विश्व बाघ दिवस के अवसर पर NTCA की 21वीं बैठक के दौरान लिया गया था।
बैठक में लिए गए प्रमुख निर्णय–
- कोर क्षेत्र केवल बाघों तथा अन्य वन्यजीवों के विचरण करने और प्रजनन के लिए आरक्षित होंगे।
- प्रौद्योगिकी पर अधिक बल देने के साथ-साथ समावेशी अवसंरचना विकास के लिए बेहतर प्रयास किये जाएंगे। इसके अलावा, वन्यजीव संरक्षण के साथ समन्वय स्थापित करते हुए पर्यटन के विविधीकरण को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
बाघ संरक्षण का महत्व–
- बाघ शाकाहारियों और वनस्पतियों के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।
- ये पारिस्थितिकी तंत्र की बेहतरी के संकेतक होते हैं।
- पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र में सामंजस्य बनाए रखते हैं।
बाघ के संरक्षण के लिए उठाए गए कदम
- स्व-स्थाने (in-situ) संरक्षण के लिए वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया था।
- कंजर्वेशन एश्योर्ड टाइगर स्टैंडर्ड (CAITS) मानदंड निर्धारित किए गए हैं। ये मानदंड बाघ स्थलों की यह जांच करने की अनुमति देते हैं कि क्या उनके प्रबंधन उपायों से बाघों का संरक्षण होगा।
- CAITS मूल्यांकन लागू करने के लिए ग्लोबल टाइगर फोरम और विश्व वन्यजीव कोष, भारत में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के भागीदार हैं।
बाघ संरक्षण की चुनौतियां–
- बाघों की स्थिति रिपोर्ट (2018) के अनुसार, भारत में प्रत्येक तीन बाघों में से एक बाघ रिज़र्व क्षेत्रों के बाहर रहता है। इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है।
- मानवजनित गतिविधियों के कारण बाघों के पर्यावासों को नुकसान पहुंच रहा है।
- बाघों के अन्य जगह पुनर्वास की योजना एक जटिल प्रक्रिया है। इसमें पर्यावास की पारिस्थितिकी में बदलाव होता है।
- वर्ष 2019 में जारी अखिल भारतीय बाघ अनुमान के अनुसार, भारत में अब 2,967 बाघ हैं।
- मध्य प्रदेश में सबसे अधिक बाघ हैं। इसके बाद कर्नाटक और उत्तराखंड का स्थान हैं।
बाघ संरक्षण की स्थिति
- बाघ को IUCN की एंडेंजर्ड श्रेणी में रखा गया है ।
- भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत इसको ,अनुसूची-1 में सूचीबद्ध किया गया है ।
- इसके साथ ही वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) के अन्तरगत परिशिष्ट-1 में सूचीबद्ध ।
स्रोत –द हिन्दू