सांसदों और विधायकों से जुड़े मामलों हेतु विशेष न्यायालयों का गठन असंवैधानिक नहीं

उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि सांसदों और विधायकों से जुड़े मामलों के लिए विशेष न्यायालयों का गठन करना असंवैधानिक नहीं है ।

  • उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि सांसद/विधायक अपने आप में एक वर्ग का गठन करते हैं। इस प्रकार सांसदों/विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों का गठन किया जा सकता है, जो जनहित में है।
  • पिछले वर्ष, मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस तरह के विशेष न्यायालयों का गठन “कानूनी रूप से अनुमत” नहीं है, क्योंकि एक सांसद/विधायक पर मुकदमा चलाने के लिए गठित एक विशेष न्यायालय, किसी अधिनियम के तहत पहले से मौजूद विशेष न्यायालय के क्षेत्राधिकार का उल्लंघन कर सकता है। विशेष न्यायालय केवल अपराध केंद्रित हो सकते हैं, अपराधी केंद्रित नहीं।
  • उदाहरण के लिए लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) या पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम, 1960 (PCA) के तहत गठित विशेष न्यायालय।
  • हालांकि, उच्चतम न्यायालय इस तथ्य की जांच करने के लिए भी सहमत हुआ है कि क्या ये विशेष न्यायालय अभियुक्तों को उनके अपील के अधिकार से वंचित करते हैं, क्योंकि विशेष न्यायालय के पास सत्र न्यायालय की शक्तियां होंगी।
  • सामान्यतः यदि कोई अभियुक्त दंडाधिकारी के समक्ष विफल/दोषी सिद्ध हो जाताहै, तो वे सत्र न्यायालय के समक्ष अपील दायर कर सकते हैं। सत्र न्यायालय प्रथम अपीलीय न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वितीय अपीलीय न्यायालय होता है।
  • हालांकि, विशेष न्यायालयों के मामले में, अभियुक्त को दंडाधिकारी के समक्ष अपने मामले का बचाव करने का अधिकार नहीं होगा। इस प्रकार सत्र न्यायालय के समक्ष अपनी प्रथम अपीलकरने का उनका अधिकार भी समाप्त हो जाएगा।
  • वर्ष 2017 में, उच्चतम न्यायालय ने सांसदों/विधायकों के दीर्घावधि से लंबित मुकदमों केत्वरित निपटान के लिए देश भर में विशेष न्यायालयों को स्थापित करने का आदेश दिया था।
  • इस निर्णय की आवश्यकता थी, क्योंकि भ्रष्टाचार से लेकर धन-शोधन तक के 4400 से अधिक आपराधिक मुकदमे दशकों से लंबित थे। शक्तिशाली सांसदों और विधायकों ने उच्च न्यायालयों की शरण ली थी और मामलों पर अंतरिम रोक लगा दी गई थी।

स्रोत – द हिन्दू

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