विशेष इस्पात हेतु ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना’(PLI Scheme for Specialty Steel)

विशेष इस्पात हेतु ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना’(PLI Scheme for Specialty Steel)

विशेष इस्पात हेतु ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना’(PLI Scheme for Specialty Steel)

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा ‘विशेष इस्पात’ (Specialty Steel) के लिए उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (Production Linked Incentive Scheme- PLI) योजना को मंजूरी प्रदान कर दी है।

योजना के प्रमुख बिंदु और महत्व:

  • ‘विशेष इस्पात हेतु उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना’ की अवधि वर्ष 2023-24 से लेकर वर्ष 2027-28 तक 5 वर्षों की होगी।
  • इस योजना का उद्देश्य, देश में उच्च ग्रेड स्पेशियलिटी स्टील के उत्पादन को बढ़ावा देना है।
  • इस योजना के तहत पीएलआई प्रोत्साहन के तीन स्लैब निर्धारित किए गए हैं। निम्नतम स्लैब को 4 प्रतिशत और उच्चतम 12 प्रतिशत है,जोकि इलैक्ट्रिकल स्टील (Cold Rolled Grain Oriented Steel -CRGO) के लिए दिया जाएगा।
  • इस योजना के तहत कुल बजटीय परिव्यय ₹6322 करोड़ है।
  • इस योजना से लगभग 40,000 करोड़ रूपए का निवेश होने और विशेष इस्पात के लिए 25 मिलियन टन क्षमता की वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • इस योजना से लगभग 5,25000 लोगों को रोजगार प्राप्त होगा जिसमें से 68,000 प्रत्यक्ष रोजगार होगा।

कवरेज:

उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना में चुनी गई विशेष इस्पात की 5 श्रेणियां निम्नलिखित हैं:

  1. कोटेड/प्लेटेड इस्पात उत्पाद
  2. हाईस्ट्रेंथ/ वियररेजिस्टेंटस्टील
  3. स्पेशियलटी रेल
  4. अलॉय स्टील उत्पाद और स्टील वॉयर
  5. इलेक्ट्रिकल स्टील

‘स्पेशलिटी स्टील’ क्या है?

  • ‘विशेष इस्पात’ या ‘स्पेशलिटी स्टील’ (Specialty steel), मूल्य-वर्धित इस्पात होता है। साधारण रूप से तैयार इस्पात को उच्च-मूल्य वर्धित इस्पात में परिवर्तित करने हेतु, कोटिंग, प्लेटिंग, हीट ट्रीटमेंट आदि के माध्यम से विकसित किया जाता है।
  • इस स्टील का इस्तेमाल, ऑटोमोबाइल क्षेत्र, विशिष्ट पूंजीगत वस्तुओं के अलावा रक्षा, अंतरिक्ष, विद्युत् जैसे विभिन्न रणनीतिक अनुप्रयोगों में किया जा सकता है।

‘पीएलआई योजना’ हेतु ‘स्पेशलिटी स्टील’ को क्यों चुना गया?

  • साल 2020-21 में 102 मिलियन टन इस्पात के उत्पादन में से देश में मूल्य-वर्धित इस्पात अथवा विशेष इस्पात के केवल 18 मिलियन टन का उत्पादन हुआ था।
  • इसके अतरिक्त, इसी अवधि में सातमिलियन टन के आयात में से, करीब 4 मिलियनटन आयात केवल विशेष इस्पात का ही था, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 30,000 करोड़ रूपए की विदेशी मुद्राका व्यय हुआ।
  • विशेष इस्पात के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनकर, भारत इस्पात की मूल्य श्रृंखला मेप्रगति करेगा और कोरिया और जापान जैसे उन्नत इस्पात विनिर्माणक देशों के बराबर आएगा।

स्रोत –द हिन्दू

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