विशेषाधिकार हनन

विशेषाधिकार हनन

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ की गई एक टिप्पणी को लेकर टीएमसी सांसद महुआ मोइत्राके खिलाफ लोकसभा में भाजपा सांसद पी.पी. चौधरी द्वारा, विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया गया है।

संबंधित प्रकरण:

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान बोलते हुए, सांसद महुआ मोइत्रा ने न्यायाधीश के आचरण के संबंध में कुछ आक्षेप लगाए थे। तो सवाल यह है कि सदन के पटल पर, किसी न्यायाधीश के आचरण पर चर्चा की जा सकती है अथवा नहीं?

ज्ञात हो संविधान के अनुच्छेद 121 में, किसी वर्तमान अथवा पूर्व न्यायाधीश पर आरोप लगाए जाने को प्रतिबंधित किया गया है।

विशेषाधिकार क्या है?

भारतीय संविधान में विशेषाधिकार के विषय इंग्लैंड के संविधान से लिए गये हैं। एक सांसद या विधायक का जनप्रतिनिधि होने के अलावा संविधान के पालक और नीतियाँ/कानून बनाना भी एक काम है। इन पदों की महत्ता और निष्ठा को देखते हुए संविधान ने इन्हें कुछ विशेषाधिकार दिए हैं। संविधान के अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 194 के खंड 1 और खंड 2 के तहत विशेषाधिकार का प्रावधान किया गया है।

विशेषाधिकार संबंधी संवैधानिक प्रावधान:

  • संविधान के अनुच्छेद 105 के अंतर्गत भारतीय संसद, इसके सदस्यों तथा समितियों को प्राप्त विशेषाधिकार उन्मुक्तियों का उल्लेख किया गया है।
  • संविधान का अनुच्छेद 194, राज्य विधानसभाओं, इसके सदस्यों तथा समितियों को प्राप्त, शक्तियों, विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों से संबंधित है।
  • संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि ये स्वतंत्र उपबंध हैं। यदि कोई सदन विवाद के किसी भाग को कार्यवाही से हटा देता है तो कोई भी उस भाग को प्रकाशित नहीं कर पायेगा और यदि ऐसा हुआ तो संसद या विधानमंडल की अवमानना माना जाएगा। ऐसा करना दंडनीय अपराध है। इस परिस्थिति मेंअनुच्छेद19 (क) के तहत बोलने की आजादीके मूल अधिकार की दलील नहीं चलेगी।
  • हालाँकि बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि भले ही विशेषाधिकार के मामले अनुच्छेद 19 (क) के बंधन से मुक्त हों, लेकिन यहअनुच्छेद20-22 और अनुच्छेद 32 के अधीन माने जायेंगे।

विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव कैसे लाया जाता है?

नियम 222:

लोकसभा के नियम 222 के तहत कोई भी सदस्य अध्यक्ष की अनुमति से कोई भी प्रश्न उठा सकता है जिसमें उसे लगता है कि किसी सदस्य या सभा या समिति के विशेषाधिकार का हनन हुआ है।

‘विशेषाधिकार हनन’ क्या होता है?

  • सामान्यतः, ऐसा कोई कार्य जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, संसद के किसी सदन के काम में बाधा या अड़चन डालता है अथवा संसद के किसी सदस्य या अधिकारी के कर्त्तव्य निर्वहन में बाधा उत्पन्न करता है, विशेषाधिकार हनन के रूप में माना जाता है।
  • सदन, उसकी समितियों या सदस्यों पर आक्षेप लगाने वाले भाषण, अध्यक्ष के कर्त्तव्यों के पालन में उसकी निष्पक्षता या चरित्र पर प्रश्न करना, सदन में सदस्यों के आचरण की निंदा करना, सदन की कार्यवाहियों का झूठा प्रकाशन करना आदि सदन के विशेषधिकारों का हनन तथा अवमानना होगा।
  • सदन के अध्यक्ष अथवा सभापति द्वारा एक विशेषाधिकार समिति का गठन किया जाता है, जिसमें  निचले सदन में 15 सदस्य होते हैं तथा उच्च सदन में 11 सदस्य होते हैं।
  • समिति के सदस्यों को सदन में दल की संख्या के आधार पर नामित किया जाता है।
  • अध्यक्ष अथवा सभापति द्वारा सर्वप्रथम प्रस्ताव पर निर्णय लिया जाता है।प्रथम दृष्टया, विशेषाधिकार हनन अथवा अवमानना पाए जाने पर अध्यक्ष अथवा सभापति द्वारा, निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेज दिया जाता है।
  • समिति, आरोपी व्यक्ति द्वारा दिए गए बयानों से राज्य विधायिका और उसके सदस्यों की अवमानना तथा जनता के सामने छवि पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच करेगी।
  • समिति को अर्ध-न्यायिक शक्तियां प्राप्त होती हैं तथा वह सभी संबंधित व्यक्तियों से स्पष्टीकरण की मांग कर सकती है, तथा परीक्षण करने के उपरान्त अपने निष्कर्षों के आधार पर राज्य विधायिका के विचारार्थ सिफारिश देगी।

स्रोत – द हिन्दू

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