विवाह की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव
हाल ही में मंत्रिमंडल ने महिलाओं के विवाह की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव पारित किया है ।
यह प्रस्ताव जया जेटली की अध्यक्षता वाले केंद्र के कार्यबल द्वारा नीति आयोग को प्रस्तुत की गई सिफारिशों पर आधारित है।
इस कार्यबल का गठन मातृत्व की आयु, मातृ मृत्यु दर (MMR) कम करने की अनिवार्यता, पोषण स्तर में सुधार और संबंधित मुद्दों से संबद्ध मामलों की जांच के लिए किया गया था।
विवाह हेतु वैध आयु बढ़ाने के पक्ष में तर्कः
- कम आयु में विवाह लड़कियों को सामान्य, लैंगिक और प्रजनन स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य मानक सेवंचित करता है।
- मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर और बच्चों का पोषण स्तर माता की आयु पर निर्भर करता है।
- अल्पायु में विवाह का अर्थ है श्रम बल में महिलाओं की संख्या कम होना।
विपक्ष में तर्क
- पुत्र प्राप्ति को वरीयता और अत्यधिक निर्धनता के कन्या भ्रूण हत्या एवं लिंग-चयनात्मक गर्भपात के बढ़ते प्रचलन जैसे अनपेक्षित परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
- जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अवैध विवाहों के लिए विवश हो सकता है। इसका अर्थ यह होगा कि 21 वर्ष की होने तक लड़कियों का अपने निजी मामलों में अत्यल्प अधिकार होगा।
सम्मति आयु अधिनियम, 1891: विवाह की आयु का उल्लेख किए बिना, लैंगिक संबंध हेतु सहमति के लिए आयु को 10 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दिया गया था।
वर्ष 1929 का बाल विवाह निरोध अधिनियम (शारदा अधिनियम के रूप में लोकप्रिय): लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष और लड़कों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई थी।
वर्ष 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियमः लड़कियों और लड़कों के लिए आयु सीमा को संशोधित कर क्रमशः 18 वर्ष और 21 वर्ष कर दिया गया था।
स्रोत – पी आइ बी