08 नवंबर 2021 को भारत में विमुद्रीकरण के पांच वर्ष पूरे हो गए। ज्ञातव्य है कि पिछले विमुद्रीकरण के कारण 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों की वैधता वापस ले ली गयी थी।
ध्यातव्य है कि ये दोनों करेंसी नोट उस समय मूल्य के संदर्भ में प्रचलन (यानी सर्कुलेशन) में मुद्रा का 86 प्रतिशत थे।
हालिया निष्कर्षः
- केवल अक्टूबर माह में 4 अरब से अधिक के लेन-देन के चलते डिजिटल भुगतान, एक प्रमुख भुगतान-विकल्प बन गया है।
- UPI लेन-देन की संख्या, कार्ड द्वारा लेन-देन और प्रीपेड भुगतान साधनों की तुलना में अधिक है।
- उच्च मूल्यवर्ग के नोटों का हिस्सा, जो विमुद्रीकरण (500 और 1,000 रुपये) से पहले 86% से अधिक था, वर्तमान में 7% (500 और 2,000 रुपये) है।
- वैश्विक महामारी के कारण, भारत के नॉमिनल GDP में 3% का वार्षिक संकुचन आया है। इसके कारण नकद-GDP अनुपात में वृद्धि हुई है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी की प्राथमिकता बढ़ गई है।
- नकद-GDP अनुपात या करेंसी इन सर्कुलेशन (CIC) और GDP के मध्य अनुपात, देश की GDP के अनुपात के रूप में प्रचलन में नकदी के मूल्य को दर्शाता है।
- जब करेंसी और GDP के मध्य अनुपात बढ़ने लगे या उच्च हो जाए, तो उसका सीधा मतलब यह है कि अनौपचारिक क्षेत्र में आर्थिक लेन-देन पुनः गति प्राप्त करने लगा है।
स्रोत – द हिन्दू