विधेयकों को पारित करने के संबंध में राज्यपाल की शक्ति
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, राज्यपाल को विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों को “यथाशीघ्र” मंजूरी देनी चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश इसलिए जारी किया है, क्योंकि तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे राज्यों में राज्यपाल की मंजूरी के लिए बड़ी संख्या में विधेयक लंबित हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 200 के परंतुक (proviso) 1 का उल्लेख करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “यथाशीघ्र अभिव्यक्ति” के महत्वपूर्ण संवैधानिक निहितार्थ हैं। इसलिए, संवैधानिक पद धारकों को इस अभिव्यक्ति को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए ।
- अनुच्छेद – 200 स्पष्ट रूप से यह उपबंध करता है कि, राज्यपाल को धन विधेयकों के अलावा अन्य विधेयकों को यथाशीघ्र सदन/सदनों को इस संदेश के साथ वापस लौटाना चाहिए कि प्रस्तावित विधेयक पर पुनर्विचार किया जाए ।
राज्यपाल की किसी विधेयक पर अपनी स्वीकृति देने की शक्ति
साधारण विधेयक:
साधारण विधेयक को एक सदनीय / द्विसदनीय विधायिका द्वारा पारित किए जाने के बाद जब राज्यपाल के पास भेजा जाता है, तो राज्यपाल के पास 4 विकल्प होते हैं:
- विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है और तब विधेयक एक अधिनियम बन जाता है।
- विधेयक पर अपनी सहमति रोक लेता है, तब विधेयक समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बनता है।
- सदन या सदनों के पास विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है ।
- यदि विधेयक को सदन द्वारा संशोधनों के साथ या बिना संशोधन के फिर से पारित किया जाता है और राज्यपाल के पास उसकी सहमति के लिए भेजा जाता है, तब राज्यपाल को विधेयक पर अपनी सहमति अवश्य देनी होगी ।
इस प्रकार, राज्यपाल को केवल निलंबनकारी वीटो (Suspensive veto) प्राप्त होता है। राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आरक्षित रख लेता है (इसके बाद विधेयक को अधिनियमित करने में राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं रहती है) ।
धन विधेयक :
जब धन विधेयक एक सदनीय / द्विसदनीय विधायिका द्वारा पारित होने के बाद राज्यपाल को भेजा जाता है, तो राज्यपाल के पास 3 विकल्प होते हैं:
- विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है और तब विधेयक एक अधिनियम बन जाता है ।
- विधेयक पर अपनी सहमति रोक सकता है,तब विधेयक समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बनता है।
- राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आरक्षित रख लेता है ( अनुच्छेद 201 ) ।
स्रोत – द हिन्दू