विडॉलरीकरण (De-dollarization) का मुद्दा
हाल ही में ब्रिक्स (BRICS) राष्ट्र नई मुद्रा विकसित करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार ब्रिक्स देश एक नई आरक्षित मुद्रा विकसित कर रहे हैं।
इससे एक बार फिर विडॉलरीकरण (De-dollarization) का मुद्दा सुर्खियों में आ गया है।
ब्रिक्स समूह में शामिल देश हैं- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ।
डॉलर के प्रभुत्व का इतिहास
- अमेरिकी डॉलर 1944 में दुनिया की आधिकारिक आरक्षित मुद्रा बन गई थी । यह निर्णय ब्रेटन वुड्स समझौते के अंतर्गत लिया गया था।
- तब से डॉलर का प्रभुत्व रहा है। इससे अमेरिका लंबे समय से आर्थिक प्रतिबंधों को विदेश नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में इस्तेमाल करता रहा है।
वि-डॉलरीकरण:
- इसमें आर्थिक लेन-देन में स्थानीय मुद्रा के उपयोग को बढ़ाने के लिए मैक्रो – इकोनॉमिक और माइक्रो-इकोनॉमिक नीतियों के मिश्रण शामिल हैं।
- साथ ही, इससे डॉलरीकरण की विनिमय – जोखिम संबंधी लागतों के बारे में जागरूकता भी बढ़ेगी ।
वि-डॉलरीकरण का महत्त्व:
- यह अमेरिकी डॉलर पर अन्य देशों की निर्भरता को कम करेगा ।
- यह मुद्रा उतार-चढ़ाव और ब्याज दरों में बदलाव के प्रति देशों की सुभेद्यताओं को कम करेगा।
- यह आर्थिक स्थिरता में सुधार करेगा और वित्तीय संकट के जोखिम को कम करेगा।
रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम:
- हाल ही में यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, रूस और संयुक्त अरब अमीरात सहित 18 देश भारतीय रुपये में व्यापार करने पर सहमत हुए हैं।
- भारतीय और रूसी बैंकों ने रुपये में व्यापार के लिए विशेष वोस्ट्रो खाते खोले हैं।
- हाल ही में घोषित भारत की नई विदेश व्यापार नीति, 2023 रुपये में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को समर्थन प्रदान करेगी।
अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व
- लगभग दो-तिहाई अंतर्राष्ट्रीय ऋण बाजार पर डॉलर का प्रभुत्व है।
- सीमा पारीय ऋण के लगभग 3/5 वें हिस्से पर डॉलर का प्रभाव है।
- 63% अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा भंडार पर डॉलर का प्रभुत्व है।
स्रोत – बिजनेस स्टैण्डर्ड